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पर्यावरण को व्यक्तिगत रूप से जानना आवश्यक है

Mahendra Pratap Singh

Mahendra Pratap Singh Opinions & Updates

ByMahendra Pratap Singh Mahendra Pratap Singh   225

पर्यावरण का अर्थ है परि + आवरण। हमारे चारों ओर जो कुछ भी दिखाई देता है और जिसका निर्माण मानव द्वारा
पर्यावरण का अर्थ है परि + आवरण। हमारे चारों ओर जो कुछ भी दिखाई देता है और जिसका निर्माण मानव द्वारा नहीं किया गया है वह सब पर्यावरण के अन्तर्गत आता है। पर्यावरण का सामान्य अर्थ है - चारों ओर की परिस्थितियाॅं। प्रसिद्ध विद्वान डगलस और हालैंड के शब्दों में-
‘‘पर्यावरण या वातावरण वह शब्द है जो समस्त वाह्य शक्तियों, प्रभावों और परिस्थितियों का सामूहिक रूप से वर्णन करता है, जो जीवधारी के जीवन, स्वभाव, व्यवहार और अभिवृद्धि, विकास और प्रौढ़ता पर प्रभाव डालता है।’’
चाणक्य के अनुसार-
‘‘साम्राज्य की स्थिरता पर्यावरण की रूवच्छता पर निर्भर करती है।’’
एनास्टासी के अनुसार-
‘‘पर्यावरण वह प्रत्येक वस्तु है जो शुक्रकण के अतिरिक्त प्राणी को प्रभावित करता है।’’
पी0 जिस्बर्ट के अनुसार-
‘‘जो किसी एक वस्तु को चारों ओर से घेरे है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है, पर्यावरण होता है।’’
हर्सकोविट्स (Herskovits) के अनुसार-
‘‘पर्यावरण सम्पूर्ण वाह्य परिस्थितियों और उसका जीवधारियों पर पड़ने वाला प्रभाव है जो जैव जगत के जीवन चक्र का नियामक है।’’
राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् लखन≈ द्वारा प्रकाशित पत्रक (1987) के अनुसार-
‘‘पर्यावरण से तात्पर्य है- जीव के लिए एक दूसरे पर और भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर समस्त प्राणियों सहित वह पृथ्वी जिसमें हम रहते हैं। मनुष्य जिस स्थान पर रहता है, वहाॅं की वायु, जल एवं मिट्टी का प्रभाव उस पर पड़ता है। आस पास के पेड़- पौधे एवं पशु-पक्षी भी उसके जीवन को प्रभावित करते हंै। ये सभी कुछ पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं।’’
पर्यावरण के दो आयाम हैं- प्राकतिक एवं मानसिक।
वर्तमान समय में पर्यावरण के दोनों स्वरूप प्रदूषित हैं। प्राकृतिक प्रदूषण के सम्बन्ध में धीरे-धीरे विश्व स्तर पर जागृति उत्पन्न हो रही है। वास्तव में धरती के चारों ओर, धरती के अन्दर एवं धरती पर जो कुछ भी उपलब्ध है एवं जिसका निर्माण मानव द्वारा नहीं किया गया है वह सब पर्यावरण के अन्तर्गत आता है। पर्यावरण के मुख्यतः दो स्वरूप हैं- निर्जीव एवं सजीव। नदियां, पहाड़, समुद्र, सूरज, चन्द्रमा, तारे, झरने आदि पर्यावरण के निर्जीव स्वरूप के अन्तर्गत आते हैं। पर्यावरण के सजीव स्वरूप के पुनः दो भाग हैं- जीव जन्तु एवं वनस्पतियाॅं। विशालकाय हाथी से लेकर चींटी एवं कीट-पतंगे तक जीव-जन्तु के अन्तर्गत आते हैं तथा पीपल, बरगद, पाकड़ आदि के विशाल वृक्षों से लेकर घास-फूस तक वनस्पतियों का संसार बनाते हैं।
वन्य जीवों एवं वृक्षों के अतिरिक्त ऋषियों द्वारा प्रकृति के निर्जीव स्वरूप जैसे पर्वत, नदियां, सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी आदि सभी की उपासना की गयी है। गंगा, यमुना, गोदावरी आदि नदियों में स्नान करने की शुभ परम्परा आज भी विद्यमान है। इलाहाबाद में गंगा-यमुना के संगम पर लगने वाला माघ-मेला विश्व का सबसे बड़ा मेला है जहाॅं आस्थावश लाखों लोग प्रतिवर्ष पुण्य स्नान करने के लिये आते हैं। हिमालय, गोवर्धन, विन्ध्याचल एवं अन्य अनेक पर्वतों को पूज्य माना गया है। सूर्य एवं चन्द्रमा को देवता का स्वरूप माना गया है। इस प्रकार प्रकृति के सभी अवयवों को पूज्यनीय मानते हुये उनसे एक भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की गयी है। 
ऐतिहासिक काल में दृष्टि डालने पर हम पाते हैं कि कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में अनेक अभयारण्य एवं हस्ति संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना का उल्लेख किया है। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में वनों की सुरक्षा एवं प्रबन्ध के लिये प्रशासक तैनात किये गये तथा वन एवं वन्यजीव से सम्बन्धित अपराधों पर कठोर दण्ड का प्राविधान किया गया। महान सम्राट अशोक वृक्षों का पुजारी था। अशोक के शासन काल में योजनाबद्ध तरीके से वृक्षारोपण एवं जलाशयों की समुचित व्यवस्था हेतु मंत्रियों की नियुक्ति की गयी। व्यापक रूप से पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया जिससे जनता को यात्रा के समय शीतल छाया प्राप्त हो सके। 
मुगलों के शासन काल में कई स्थानों पर अनेक वाटिकाओं का निर्माण कर उनमें विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों का रोपण किया गया। सम्राट अकबर के राज्य में विभिन्न वाटिकायें स्थापित की गयी एवं नहरांे तथा मार्गों के किनारे अनेक छायादार एवं शोभाकार वृक्षों का रोपण किया गया। 

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