
देशभर में दुष्काल मुक्त भारत के लिए जल साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है. सोमवार दिनांक 15 मई 2017 को इसके लिए दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में राष्ट्रीय जल सम्मेलन का भी आयोजन किया गया. इस सम्मेलन का आयोजन जन जन जोड़ो अभियान, जल बिरादरी और तरुण भारत संघ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया. इस सम्मेलन में रेल मंत्री सुरेश प्रभु की गरिमामय उपस्थिति रही मुख्य अतिथि के तौर पर उन्होंने इस आयोजन का शुभारंभ किया. इस सम्मेलन की अध्यक्षता गंगा सेवा अभियान के संयोजक और शंकराचार्य के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने की. मंच का संचालन जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने किया. इस सम्मेलन में देशभर से आए लोगों ने शिरकत की. इसमें आम लोगों के साथ साथ किसान, जल सर्वेक्षण में लगे पर्यावरण वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हुए. इस कार्यक्रम में मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे भी शामिल होने वाले थे मगर अपनी बीमारी के कारण उन्हें अचानक से अपना यह कार्यक्रम बदलना पड़ा.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि भारत को दुष्काल मुक्त बनाने के लिए नदियों को दोबारा जीवित करना होगा. उन्होंने इसके लिए बताया कि रेलवे इसमें अपनी भूमिका निभा रही है. उन्होंने कहां इसके लिए वह भी प्रयत्नशील है और रेलवे की जितनी भी जमीन है उस पर पुराने जल-स्त्रोतों को पूर्ण जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे 200 साल पुराना कुआं इसी प्रयास में पुनर्जीवित किया गया और रेलवे को इसका फायदा यह मिला कि रेलवे 5 करोड़ रुपए का जो जल खरीदा करती थी इस कुएं के द्वारा इसकी पूर्ति हो गई. उन्होंने आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि जब तक आम लोगों का साथ जल के साथ रहा तब तक देश की तालाब और नदियों का संरक्षण होता रहा जैसे ही वह नदी की संस्कृति से दूर हुए जल संकट बढ़ने लगा. उन्होंने इसके साथ ही एक और बात कही कि रेलवे इस प्रयास में लगा है कि किस तरह से ट्रेन टॉयलेट में हम बिना पानी के काम चला सके जहां पानी का उपयोग नहीं किया जाए और इसका फायदा सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि इस प्रयास में अगर हम सफल हुए तो पूरी दुनिया को होगा.

तो वही दूसरी तरफ मंच संचालक और जल पुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह ने कहां की ऑफिशियल तौर पर सरकार ने तीन राज्यों में दुष्काल घोषित किया है जबकि आज 21 राज्यों में दुष्काल की स्थिति है. सूखे की वजह से लोग अपना घर बार छोड़ रहे हैं. नदियां नाले बन रही है सरकार फिर भी मजे में है. उन्होंने इसके साथ यह भी जोड़ा की दुष्काल सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि हमारे समाज में भी है. दुष्काल हमारी बुद्धि पर है इसीलिए दुष्काल जमीन पर भी दिखती है. शासक और शोषक दोनों के बुद्धि पर आज दुष्काल है. हमने विकास के नाम पर आज ऐसी त्रासदी पैदा कर दी है.

उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले गंगा की अविरलता और निर्मलता दोनों की बातें किया करते थे लेकिन आज वह सिर्फ निर्मलता की बात करते हैं. सच्चाई यह है की गंगा की निर्मलता की कामना हम उसकी अविरलता के बगैर कर ही नहीं सकते. उन्होंने बेहद जोर देते हुए कहा कि सरकार की नीतियों के कारण आज किसानी, गांव की जवानी और गांव का पानी नष्ट हो रहा है. धरती पर बढ़ते बुखार और प्रकृति के बिगड़ते मिजाज की वजह से देश में दुष्काल जैसी स्थिति बन गई है. हमने प्रकृति के मूल स्वरुप को समाप्त कर दिया है. हमने अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण भर किया है. हमें आज गांव को बचाना है तो उसके लिए हरियाली को बढ़ाना होगा. सोच और प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा.
वहीं दूसरी ओर भारत को दुष्काल मुक्त बनाने के लिए प्रयत्नशील शरद गौड़ ने बताया कि उनका लक्ष्य एक लाख गांव तक पहुंचना है और लोगों को इस विषय पर साक्षर बनाना है. इसलिए हम पूरे देश से जलदूत चुन रहे हैं अब तक छह हजार जलदूत चुने जा चुके हैं, जिनकी बकायदे ट्रेनिंग हो रही है. कुल मिलाकर हम पूरे देश से आठ हजार जलदूत चुनेंगे उन्होंने कहा कि हमने जिन 21 राज्यों को दुष्काल प्रभावित माना है हर राज्य के गांव तक हमें पहुंचना है. हमने अपने इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए हर प्रादेशिक भाषा में कुछ लिखित सामग्री तैयार की है साथी हम लगातार ग्राम संवाद कर रहे हैं.
वहीं सामाजिक तौर पर जुड़े रमेश जी ने कुछ गंभीर मसले और आंकड़े को सबके सामने रखा. उन्होंने कहा एक तरफ तो जहां अकाल जैसी स्थिति है तो वही बोतल पानी का कारोबार 20000 करोड़ रुपए है और ऐसा अनुमान है कि 2018-19 तक यह दोगुना हो जाएगा. उन्होंने एक उदाहरण के तहत समझाया कि किस तरह सीरिया में खुशहाली थी मगर जब से प्राकृतिक धरोहरों का मनमाना उपभोग होने लगा तब से सीरिया की स्थिति बदल गई. सीरिया में सब कुछ ठीक था जब से तेल निकाला जाने लगा जमीनें सूख गई 70 प्रतिशत घास खत्म हो गए लोग पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है शहरीकरण और विकास के नाम पर 70 वर्षो में नब्बे हजार गांव भारत के नक्शे से समाप्त कर दिए गए हैं. भारत सरकार पानी बचाने के लिए एक कानून लाने की तैयारी में है जहां सरकार पानी के लिए पैसा लेगी मतलब कि जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है वह पानी की उतनी ही उपभोग कर सकता है चाहे वह बर्बाद करने के लिए करें या उसके उपयोग करने के लिए. इसका परिणाम काफी भयावाह हो सकता है.

मध्य प्रदेश में रहने वाले भगवान शिव परमार जोकि प्रयावरण के लिए वर्षों से काम कर रहे हैं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमने प्राकृतिक संसाधनों को लूट लिया है. हम खुद ही अपनी भूमि से कट चुके हैं. हमें सुनियोजित और योजनागत तरीके से धीरे-धीरे ऐसा बना दिया गया है कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी एक विचारधारा लेकर खड़ा है उसे धरती लूटनी है. मतलब दुष्काल धरती पर आने से पहले हमारी मानसिकता पर आ गई है.
उत्तराखंड के निवासी रमेश मुमुक्छु जो काफी लंबे अरसे से पानी पर कार्य कर रहे हैं ने कटाक्ष भरे लहजे में अपनी बातों की शुरुआत की और कहा कि कुछ दिनों पहले लोग कहा करते थे कि दिल्ली में पानी बहुत है. हमने जगह-जगह डैम बना दिया है जिसने पानी समाप्त कर दिया है. इसकी सबसे पहले शुरुआत ग्रामीण इलाकों से ही होती है. डैम का असर अगर आप आम लोगों से पूछो तो बताते हैं कि पहले उनके यहां पानी आता था अब नहीं आता. अब जरा सोचिए जहां पानी आता ही नहीं या जहां पानी है ही नहीं वहां डैम बनाने की क्या जरूरत है. आज पानी रिचार्ज ही नहीं हो पाता है हमने पेड़, पौधे, घास सभी को समाप्त कर दिया है बदले में कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी है.
दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में काम करने वाले पर्यावरणविद् दीवान सिंह का मानना है कि दुष्काल नई चीज़ है. अंग्रेजों के आने से पहले हमने शायद ही यह नाम सुना हो. नई इसलिए कि लोगों ने इस तरह रहना छोड़ दिया कि कभी बारिश कम हुई तो वह क्या करेंगे? हमने कोई योजना नहीं बनाई कम में गुजारा करना छोड़ दिया. ऐसे में तो राजस्थान तो हमेशा ही दुष्काल का इलाका माना जाएगा मगर ऐसा है नहीं उन्होंने कम में जीना सीख लिया है.
इतना ही नहीं उन्होंने दुष्काल को समाप्त करने के लिए इसे खाप से जोड़ने की बात कही. उन्होंने अपनी बातों पर जोर देते हुए कहा कि खाप के माध्यम से बहुत कुछ हो सकता है. उसे हम एक बड़ी संस्था के तौर पर देख सकते हैं. उनके पास शक्ति और साधन दोनों हैं. आज हर जगह सामाजिक कार्यकर्ता नहीं जा सकते एक समय था कि यमुना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की बात हो रही थी हमने लड़ाई लड़ इसे बंद करवा दिया मगर और कितनी जगह हम ऐसा करवा सकते हैं हम हर जगह नहीं जा सकते. आज हमें बदलने की जरूरत है.

कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस अभियान की सफलता की कामना की और साथ ही कहा कि इस पूरे अभियान में वह हमेशा साथ खड़े रहेंगे. उन्होंने बड़े ही दिलचस्प तरीके से उपस्थित सभी लोगों के सामने एक प्रश्न रखा और उसका जवाब भी दिया. उन्होंने बताया कि आज सुबह उन्होंने कुछ पढ़ा जिसमें यह पूछा गया था कि
पानी क्या है?
उत्तर था कि -
हमारे दादाजी ने जिसे नदी में देखा,
पिताजी ने कुएं में,
हमने जिसे नल में देखा और बच्चों ने बोतल में.
पर अब उनके बच्चे कहाँ देखेंगे?
उन्होंने इसके साथ ही सरकार को इस दिशा में पहल करने की अपील की.
इस राष्ट्रीय जल सम्मेलन में देशभर के से आए पर्यावरणविदों ने शिरकत की. मौजूद विशेषज्ञों ने अपने अनुभव और विचार यहां व्यक्त किए. सभी ने एक सुर में माना कि नदियां हमारी प्राण हैं और देश को दुष्काल मुक्त करना है तो नदियों को पुनर्जीवित करना जरूरी है.

वहीं इस एक दिवसीय सम्मेलन के कल होकर जल साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट से संसद मार्ग तक मार्च निकाला गया. जिसके बाद जंतर-मंतर पर संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया. मिशन यहीं समाप्त नहीं हो जाता बल्कि देशभर में जल साक्षरता के लिए एक बहुत बड़ी टीम गांव गांव तक जाकर लोगों के बीच दुष्काल मुक्त भारत बनाने के लिए काम करेगी.
- स्वर्णताभ
By
Swarntabh Kumar 156
देशभर में दुष्काल मुक्त भारत के लिए जल साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है. सोमवार दिनांक 15 मई 2017 को इसके लिए दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में राष्ट्रीय जल सम्मेलन का भी आयोजन किया गया. इस सम्मेलन का आयोजन जन जन जोड़ो अभियान, जल बिरादरी और तरुण भारत संघ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया. इस सम्मेलन में रेल मंत्री सुरेश प्रभु की गरिमामय उपस्थिति रही मुख्य अतिथि के तौर पर उन्होंने इस आयोजन का शुभारंभ किया. इस सम्मेलन की अध्यक्षता गंगा सेवा अभियान के संयोजक और शंकराचार्य के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने की. मंच का संचालन जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने किया. इस सम्मेलन में देशभर से आए लोगों ने शिरकत की. इसमें आम लोगों के साथ साथ किसान, जल सर्वेक्षण में लगे पर्यावरण वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हुए. इस कार्यक्रम में मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे भी शामिल होने वाले थे मगर अपनी बीमारी के कारण उन्हें अचानक से अपना यह कार्यक्रम बदलना पड़ा.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि भारत को दुष्काल मुक्त बनाने के लिए नदियों को दोबारा जीवित करना होगा. उन्होंने इसके लिए बताया कि रेलवे इसमें अपनी भूमिका निभा रही है. उन्होंने कहां इसके लिए वह भी प्रयत्नशील है और रेलवे की जितनी भी जमीन है उस पर पुराने जल-स्त्रोतों को पूर्ण जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे 200 साल पुराना कुआं इसी प्रयास में पुनर्जीवित किया गया और रेलवे को इसका फायदा यह मिला कि रेलवे 5 करोड़ रुपए का जो जल खरीदा करती थी इस कुएं के द्वारा इसकी पूर्ति हो गई. उन्होंने आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि जब तक आम लोगों का साथ जल के साथ रहा तब तक देश की तालाब और नदियों का संरक्षण होता रहा जैसे ही वह नदी की संस्कृति से दूर हुए जल संकट बढ़ने लगा. उन्होंने इसके साथ ही एक और बात कही कि रेलवे इस प्रयास में लगा है कि किस तरह से ट्रेन टॉयलेट में हम बिना पानी के काम चला सके जहां पानी का उपयोग नहीं किया जाए और इसका फायदा सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि इस प्रयास में अगर हम सफल हुए तो पूरी दुनिया को होगा.
तो वही दूसरी तरफ मंच संचालक और जल पुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह ने कहां की ऑफिशियल तौर पर सरकार ने तीन राज्यों में दुष्काल घोषित किया है जबकि आज 21 राज्यों में दुष्काल की स्थिति है. सूखे की वजह से लोग अपना घर बार छोड़ रहे हैं. नदियां नाले बन रही है सरकार फिर भी मजे में है. उन्होंने इसके साथ यह भी जोड़ा की दुष्काल सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि हमारे समाज में भी है. दुष्काल हमारी बुद्धि पर है इसीलिए दुष्काल जमीन पर भी दिखती है. शासक और शोषक दोनों के बुद्धि पर आज दुष्काल है. हमने विकास के नाम पर आज ऐसी त्रासदी पैदा कर दी है.
उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले गंगा की अविरलता और निर्मलता दोनों की बातें किया करते थे लेकिन आज वह सिर्फ निर्मलता की बात करते हैं. सच्चाई यह है की गंगा की निर्मलता की कामना हम उसकी अविरलता के बगैर कर ही नहीं सकते. उन्होंने बेहद जोर देते हुए कहा कि सरकार की नीतियों के कारण आज किसानी, गांव की जवानी और गांव का पानी नष्ट हो रहा है. धरती पर बढ़ते बुखार और प्रकृति के बिगड़ते मिजाज की वजह से देश में दुष्काल जैसी स्थिति बन गई है. हमने प्रकृति के मूल स्वरुप को समाप्त कर दिया है. हमने अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण भर किया है. हमें आज गांव को बचाना है तो उसके लिए हरियाली को बढ़ाना होगा. सोच और प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा.
वहीं दूसरी ओर भारत को दुष्काल मुक्त बनाने के लिए प्रयत्नशील शरद गौड़ ने बताया कि उनका लक्ष्य एक लाख गांव तक पहुंचना है और लोगों को इस विषय पर साक्षर बनाना है. इसलिए हम पूरे देश से जलदूत चुन रहे हैं अब तक छह हजार जलदूत चुने जा चुके हैं, जिनकी बकायदे ट्रेनिंग हो रही है. कुल मिलाकर हम पूरे देश से आठ हजार जलदूत चुनेंगे उन्होंने कहा कि हमने जिन 21 राज्यों को दुष्काल प्रभावित माना है हर राज्य के गांव तक हमें पहुंचना है. हमने अपने इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए हर प्रादेशिक भाषा में कुछ लिखित सामग्री तैयार की है साथी हम लगातार ग्राम संवाद कर रहे हैं.
वहीं सामाजिक तौर पर जुड़े रमेश जी ने कुछ गंभीर मसले और आंकड़े को सबके सामने रखा. उन्होंने कहा एक तरफ तो जहां अकाल जैसी स्थिति है तो वही बोतल पानी का कारोबार 20000 करोड़ रुपए है और ऐसा अनुमान है कि 2018-19 तक यह दोगुना हो जाएगा. उन्होंने एक उदाहरण के तहत समझाया कि किस तरह सीरिया में खुशहाली थी मगर जब से प्राकृतिक धरोहरों का मनमाना उपभोग होने लगा तब से सीरिया की स्थिति बदल गई. सीरिया में सब कुछ ठीक था जब से तेल निकाला जाने लगा जमीनें सूख गई 70 प्रतिशत घास खत्म हो गए लोग पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है शहरीकरण और विकास के नाम पर 70 वर्षो में नब्बे हजार गांव भारत के नक्शे से समाप्त कर दिए गए हैं. भारत सरकार पानी बचाने के लिए एक कानून लाने की तैयारी में है जहां सरकार पानी के लिए पैसा लेगी मतलब कि जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है वह पानी की उतनी ही उपभोग कर सकता है चाहे वह बर्बाद करने के लिए करें या उसके उपयोग करने के लिए. इसका परिणाम काफी भयावाह हो सकता है.
मध्य प्रदेश में रहने वाले भगवान शिव परमार जोकि प्रयावरण के लिए वर्षों से काम कर रहे हैं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमने प्राकृतिक संसाधनों को लूट लिया है. हम खुद ही अपनी भूमि से कट चुके हैं. हमें सुनियोजित और योजनागत तरीके से धीरे-धीरे ऐसा बना दिया गया है कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी एक विचारधारा लेकर खड़ा है उसे धरती लूटनी है. मतलब दुष्काल धरती पर आने से पहले हमारी मानसिकता पर आ गई है.
उत्तराखंड के निवासी रमेश मुमुक्छु जो काफी लंबे अरसे से पानी पर कार्य कर रहे हैं ने कटाक्ष भरे लहजे में अपनी बातों की शुरुआत की और कहा कि कुछ दिनों पहले लोग कहा करते थे कि दिल्ली में पानी बहुत है. हमने जगह-जगह डैम बना दिया है जिसने पानी समाप्त कर दिया है. इसकी सबसे पहले शुरुआत ग्रामीण इलाकों से ही होती है. डैम का असर अगर आप आम लोगों से पूछो तो बताते हैं कि पहले उनके यहां पानी आता था अब नहीं आता. अब जरा सोचिए जहां पानी आता ही नहीं या जहां पानी है ही नहीं वहां डैम बनाने की क्या जरूरत है. आज पानी रिचार्ज ही नहीं हो पाता है हमने पेड़, पौधे, घास सभी को समाप्त कर दिया है बदले में कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी है.
दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में काम करने वाले पर्यावरणविद् दीवान सिंह का मानना है कि दुष्काल नई चीज़ है. अंग्रेजों के आने से पहले हमने शायद ही यह नाम सुना हो. नई इसलिए कि लोगों ने इस तरह रहना छोड़ दिया कि कभी बारिश कम हुई तो वह क्या करेंगे? हमने कोई योजना नहीं बनाई कम में गुजारा करना छोड़ दिया. ऐसे में तो राजस्थान तो हमेशा ही दुष्काल का इलाका माना जाएगा मगर ऐसा है नहीं उन्होंने कम में जीना सीख लिया है.
इतना ही नहीं उन्होंने दुष्काल को समाप्त करने के लिए इसे खाप से जोड़ने की बात कही. उन्होंने अपनी बातों पर जोर देते हुए कहा कि खाप के माध्यम से बहुत कुछ हो सकता है. उसे हम एक बड़ी संस्था के तौर पर देख सकते हैं. उनके पास शक्ति और साधन दोनों हैं. आज हर जगह सामाजिक कार्यकर्ता नहीं जा सकते एक समय था कि यमुना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की बात हो रही थी हमने लड़ाई लड़ इसे बंद करवा दिया मगर और कितनी जगह हम ऐसा करवा सकते हैं हम हर जगह नहीं जा सकते. आज हमें बदलने की जरूरत है.
कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस अभियान की सफलता की कामना की और साथ ही कहा कि इस पूरे अभियान में वह हमेशा साथ खड़े रहेंगे. उन्होंने बड़े ही दिलचस्प तरीके से उपस्थित सभी लोगों के सामने एक प्रश्न रखा और उसका जवाब भी दिया. उन्होंने बताया कि आज सुबह उन्होंने कुछ पढ़ा जिसमें यह पूछा गया था कि
पानी क्या है?
उत्तर था कि -
हमारे दादाजी ने जिसे नदी में देखा,
पिताजी ने कुएं में,
हमने जिसे नल में देखा और बच्चों ने बोतल में.
पर अब उनके बच्चे कहाँ देखेंगे?
उन्होंने इसके साथ ही सरकार को इस दिशा में पहल करने की अपील की.
इस राष्ट्रीय जल सम्मेलन में देशभर के से आए पर्यावरणविदों ने शिरकत की. मौजूद विशेषज्ञों ने अपने अनुभव और विचार यहां व्यक्त किए. सभी ने एक सुर में माना कि नदियां हमारी प्राण हैं और देश को दुष्काल मुक्त करना है तो नदियों को पुनर्जीवित करना जरूरी है.
वहीं इस एक दिवसीय सम्मेलन के कल होकर जल साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट से संसद मार्ग तक मार्च निकाला गया. जिसके बाद जंतर-मंतर पर संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया. मिशन यहीं समाप्त नहीं हो जाता बल्कि देशभर में जल साक्षरता के लिए एक बहुत बड़ी टीम गांव गांव तक जाकर लोगों के बीच दुष्काल मुक्त भारत बनाने के लिए काम करेगी.
- स्वर्णताभ