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औद्योगिक कचरे से जहरीली हुई गोमती मे हज़ारों मछलियां मरी

Gomti River and Gomti Riverfront Lucknow - Analysis on Restoration and Development

Gomti River and Gomti Riverfront Lucknow - Analysis on Restoration and Development News and Media Coverage

ByAnant Srivastava Anant Srivastava   41

Representational Image27 जनवरी को हुई बारिश मे बह के आये औद्योगिक कचरे से गोमती मे ज़हर घुल गया और हज़

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27 जनवरी को हुई बारिश मे बह के आये औद्योगिक कचरे से गोमती मे ज़हर घुल गया और हज़ारों मछलियां मर गयीं। मूसलादार  बारिश के बाद मरी मछलियों को देख के हड़कंप मच गया। शनिवार की सुबह जब ये खबर मिली तो सारे मछुआरे मछली पकड़ने नदी किनारे पहुच गए। वही मछुआरे के बच्चों ने मछलियां को सड़क किनारे बेंचना भी शुरू कर दिया। लेकिन  जान्ने की बात यह है के जब जहरीले जल से मछलियां मर सकती है तो इन्हें खाने से भी नुक्सान हो सकता है।

भारी संख्या मे मरी मछलियों से हड़कंप मचने पर सूचना मिलते ही जिला प्रशाशन के अधिकारी वह पहुचे और मछलियां मारने के कारण की जांच शुरू कर दी। 

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अनुभवियों की माने तो बारिश के पानी मे बह के आये औद्योगिक कचरे और जहरीले पदार्थ के कारण गोमती का पानी भी जहरीला हो गया जिससे उसकी जलीय जीवन को नुकसान हुआ। नदी के किनारे चल रहे निर्माणाधीन कार्यों के चलते कई नालियों को बंद कर रखा गया था जो भारी वर्षा के चलते ओवरफ्लो गयीं। शहर के कई दूषित नाले अभी भी बिना ट्रीटमेंट के गोमती मे मिल रहे है। 

अधिकारियों ने मरी हुई मछलियों के लिए जांच तो शुरू करवाई परंतु डालीगंज पुल्ल के नीचे बेचें जाने वाली मरी मछलियों को नहीं रुकवाया। जहरीली मछलियों के सेवन से जान माल का खतरा संभावित होता है।  
वहां रहने  मछुआरों की माने तो इतने संख्या मे  मछलियों के वजह से वजह से दुर्गन्ध के साथ साथ बीमारियां फैल सकती है। उन्होंने ये भी बताया के अक्सर नदी मे हज़ारों की संख्या मे मछलियां मरती है पर कोई भी अधिकारी सूचना मिलने के बाद भी नहीं आता। और जब कभी कभी आते है तो खानापूर्ति करके चले जाते है। 
इससे पहले भी हो चूका है ऐसा 
पिछले वर्ष 2016 मे भी एकाएक हज़ारो मछलियां उतराने के बाद हड़कंप मच गया था। लखनऊ शहर के गोलाघाट , सीताकुंड ,कुड़वार ,कटवां जैसे घाटों पर नदी के किनारे कई किलोमीटर मरी हुई मछलियों का ढेर लग गया था। मछलियों के आकस्मिक मौत के पीछे जगदीशपुर की फैक्टरियों से छोड़ी गए ज़हरीले रसायन को जिम्मेदार बताया गया था।
ऐसा ही कुछ वर्ष 2012 मे  हुआ था। लखनऊ के कुड़िया घात के निकट हज़ारों मछलियां उतरने से हड़कंप मचा था। उस वक़्त मौके पर आये गोमती प्रदूषण के मुख्या प्रबंधक जे ए अंसारी ने बताया के इसका कारण अपस्ट्रीम सीतापुर मे सुगरमिलों से छोड़ा गया उनट्रेटड पानी है।  जानकारों का कहना है की अचानक नदी के पानी मे ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से ऐसा हुआ। एक दिन पहले हुई बारिश की वजह से जमे कचरे के वजह से नदी मे ऑक्सीजन की कमी हुई।
ऐसा अक्सर नदियों मे होता रहता है। हाल ही मे पिछले वर्ष 2016 इंदौर की क्षिप्रा नदी मे भी हज़ारों मछलिया उतरा गयी थी। कारण था कहन नदी का पानी का क्षिप्रा नदी मे मिलना जिसमे औद्योगिक कचरे बहता है।
नदी के जल मे मिश्रित ऑक्सीजन का प्रभाव और उचित मात्रा 
मछलियां और अन्य जलीय प्राड़ी पानी मे घुली ऑक्सीजन का प्रयोग करते है। घुली ऑक्सीजन की मात्रा अगर कम हो तो मछलियों की मौत हो सकती है। पानी मे ऑक्सीजन की उचित मात्रा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है। तापमान बढ़ने पर यह मात्रा काम हो जाती है। नदी मे घुली ऑक्सीजन का उपयोग और भी जीव करते है। बढे हुए शैवाल भी रात मे ऑक्सीजन ज्यादा खींचते है। काफी बार ऐसा मानवीय गतिविधियों के वजह से भी होता है। फेर्टिलिज़ेर्स ,मैन्योर , ऑटोमोबाइल , सेवेज आदि से विनाशक तत्वों मे वृद्धि हो जाती है जिससे ऑक्सीजन मे कमी आ जाती है ।
पूरे भारत मे ऐसा अक्सर होता देखा गया है। और अक्सर इसका कारण नदी मे जहरीला पानी छोड़ा जाना होता है। नदी के किनारे पर फैक्टरियां बिना किसी रोक टोक के अपना गन्दा पानी नदी मे छोड़ देती है। इसपर कोई सरकार  गंभीरता से ध्यान नहीं देती है। आखिर कब तक सरकारें नदियों के स्वास्थ की अनदेखी करती रहेगी? कब तक रिवरफ्रण्ट के नाम पर खोखले काम होते रहेंगे ?

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