Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for BallotboxIndia Verified Badge tag on profile.
सर्च करें या कोड का इस्तेमाल करें, क्या आज बैलटबॉक्सइंडिया कोऑर्डिनेटर से मिले? पहचान के लिए बैज नंबर डालें और BallotboxIndia Verified Badge का निशान देखें.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page {{ header.searchresult.page }} of (About {{ header.searchresult.count }} Results) Remove Filter - {{ header.searchentitytype }}

Oops! Lost, aren't we?

We can not find what you are looking for. Please check below recommendations. or Go to Home

तम्बाकू का नशा: संकल्प ही विकल्प

  • तम्बाकू का नशा: संकल्प ही विकल्प
  • {{agprofilemodel.currag.ag_started | date:'mediumDate'}}
तंबाकू नशा है और इसे इस्तेमाल करने वाले - नशेङी! संभव है यह संबोधन तंबाकू खाने वालों को बुरा लगे, लेकिन समय का सच यही है और विश्व तंबाकू निषेध दिवस की चेतावनी भी। भारत में जितनी भी चीजें नशे के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं, मात्रा के पैमाने पर इनमें तंबाकू का नंबर सबसे आगे है।
  
27 करोङ, 50 लाख तंबाकू उपभोक्ताओं के साथ भारत नंबर दो देश है। चीन का स्थान पहला है। 505 वर्ष पहले जब पुतर्गाली तंबाकू नाम का यह नशा लेकर हिंदुस्तान आये होेंगे, तब उन्होने यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन भारत.. अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बङा तंबाकू उत्पादक देश बन जायेगा। आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और महाराष्ट्र भारत के बङे तंबाकू उत्पादक राज्य हैं। इस हकीकत को सिर्फ बङी आबादी से जोङकर नहीं बचा जा सकता। समस्या कहीं और ज्यादा जटिल है।

निदान कहीं और ज्यादा जरूरी है।

भारत में तंबाकू के दुष्प्रभाव दुनिया के और देशों की तुलना में ज्यादा व्यापक और जटिल इसलिए हैं कि यहां तंबाकू के सेवन के तौर-तरीके ज्यादा विविध हैं। यहां तंबाकू पी जाती है, चबाई जाती है, खाई जाती है, चूसी जाती है.. धुंए में उङाई जाती है। दुनिया के किसी देश में सेवन के इतने प्रकार नहीं हैं। भारत में सिगरेट की तुलना में बीङी पीने वालों का प्रतिशत ज्यादा है। सच यह है कि सिगरेट की तुलना में बीङी, तीन गुना अधिक कार्बन मोनो आॅक्साइड व निकोटिन तथा पांच गुना अधिक तारकोल होता है। नशा बढाने के लिए चबाई जाने वाली खैनी में कई चीजों का मिश्रण उसे और ज्यादा खतरनाक बनाता है। मैनपुरी खैनी इसी कारण बदनाम हुई। पान में तंबाकू का चलन भारत में मुगलिया जमाने से है।

 

पान की पीक से सरकारी दफ्तरों की दीवारें रंगी देखकर हमें अपनी तमीज पर तरस भले ही आता हो, लेकिन इसकी सामाजिक स्वीकार्यता में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह बहुत बङी बाधा है। हुक्का कभी देहात की पंचायतों तक ही सीमित था, बड़ों के सामने छोटों द्वारा हुक्का न पीने की अदब में बंधा था; अब यह उस हद से बाहर निकलकर अलग-अलग रंग, फ्लेवर और नशे के साथ ’हुक्का बार’ के रूप में किशोरों को अपनी चपेट में ले रहा है। कौन कितने छल्ले की दौड़ खतरनाक साबित हो रही है। चीन, ऐसे हुक्कों का भारत मे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। सुखद है कि इसका संज्ञान लेते हुए भारत सरकार ने 25 मई को तत्काल प्रभाव से पूरे भारत में ’हुक्का बार’ पर प्रतिबंध लगा दिया है।

  

एक शोधपत्र के मुताबिक, भारत में कैंसर के आधे मरीज तंबाकू की वजह से शिकार बनते हैं। इनमें से 12 प्रतिशत पुरुष और 8 प्रतिशत महिला शिकार मुंह के कैंसर के होते हैं। 40 वर्ष से कम उम्र वाले दिल के मरीजों में 60 प्रतिशत की बीमारी की वजह तंबाकू का सेवन ही होती है। प्रति वर्ष करीब सवा करोङ लोगों के तंबाकू की वजह से अलग-अलग बीमारियों की चपेट में आने की आंकङा है। वास्तविक आंकङे इससे ढाई से तीन गुना अधिक होने का अनुमान हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान तो और भी डरावना है - ’

 

2020 तक एक वर्ष में 10 से 15 लाख भारतीय तंबाकू की वजह से मरने को मजबूर होंगे।
यह सच भी हो सकता है, क्योंकि आज ही भारत में करीब 10 लाख कर्मी तंबाकू उद्योग में काम करते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत महिलायें और 12 से 15 प्रतिशत बच्चों के होने का अनुमान बताया गया है। ऐसे कर्मियों में  कुछ बीमारियों का होना आम है। बीङी उद्योग कर्मियों को टी बी होना आम है।
 
तंबाकू उत्पादन के पक्ष में तर्क देने वाले कह सकते हैं कि तंबाकू उद्योग भारतीय आर्थिकी में हर वर्ष कई हजार करोङ का योगदान करता है। केन्द्रीय आबकारी कर में इसका योगदान 12 प्रतिशत है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि यदि 2004 में तंबाकू की राष्ट्रीय बिक्री 244 अरब की थी, तो इससे हुए बीमारों के इलाज का खर्च 277.81 अरब आया था। वे भूल जाते हैं कि तंबाकू की वजह से कितने बच्चे जन्म लेने के साथ ही मृत्यु की उलटी गिनती गिनना शुरु कर देते हैं। तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं के गर्भस्थ शिशु शिकारों का आंकङा लाख तक पहुंच गया है। तंबाकू सिर्फ मंुह, फेफङे, दिल, पेट और हमारे पूरे श्वसन तंत्र को ही अपना निशाना नहीं बनाता; यह तनाव भी बढाता है और कान तक में विकार पैदा भी करता है। 
 
तंबाकू कंपनियों के कचरे और आपराधिक विश्लेषण बताते हैं तंबाकू के दुष्प्रभाव सिर्फ शारीरिक नहीं है, पर्यावरणीय और सामाजिक भी है। भारत में ज्यादातर किशोर जिज्ञासावश, बङों के अंदाज से प्रभावित होकर, दिखावा अथवा दोस्तों के प्रभाव में पङकर तंबाकू के शिकार बनते हैं। कम उम्र में तंबाकू के नशे में फंसने वाले नियम-कायदों को तोङने से परहेज नहंी करते। ऐसे किशोर मन में अपराधी प्रवृति के प्रवेश की संभावना अधिक रहती है। ऐसे चैरफा दुष्प्रभाव.. चैरफा रोकथाम की मांग करते हैं। ऐसे प्रयास हुए भी हैं, लेकिन नतीजे अभी भी नाकाफी ही  हैं। 

  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के ’नो टोबेको-2004’ प्रयासों का हिस्सा बने भारत में आज तंबाकू नियंत्रण हेतु एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। ’कोप्टा’ कानून है। विज्ञापनों पर रोक है। सार्वजनिक स्थलो पर धूम्रपान निषेध के बोर्ड टंगे हैं। तंबाकू उत्पादों के पैकेट के 40 प्रतिशत हिस्से पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी व संबंधित चेतावनी दर्ज करने का नियम है। नियम के मुताबिक नाबालिगों को तंबाकू नहीं बेची जा सकती। 30 कमरों तक के होटलों और 30 सीटों तक केे रेस्तरांओं में घ्रूमपान पर रोक का कायदा है। स्वास्थ्य मंत्रालय में तंबाकू निषेध हेतु अलग से एक प्रकोष्ठ काम कर रहा है। बावजूद इसके आज भी भारत में तंबाकू उपभोक्ताओं की रफ्तार 2 से 5 फीसदी की दर से हर वर्ष बढ ही रही है; कायदे रोज टूट ही रहे हैं। क्यों ? बङा प्रश्न यही है।
 
रेलवे एक्ट-1989 ने ट्रेनों को धुंए से मुक्त करने की कोशिश की थी। वर्ष 2013 में 25 मई को रेलवे ने कहा कि ट्रेनमें धुआं उड़ानेवालों की खैर नहीं। क्या हुआ ?
 
अरूणांचल और जम्मू-कश्मीर को छोङ दें, तो कहने को पिछले चार सालों में सभी राज्यों में तंबाकू गुटखा पर प्रतिबंध लगा है। मध्य प्रदेश इनमें सबसे पहला और पं बंगाल अब तक का सबसे आखिरी राज्य है।
 
लेकिन क्या तंबाकू गुटखा की बिक्री वाकई पूरी तरह रुक पाई है ? 
 
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2001 में तंबाकू नियंत्रण न हो पाने को मानवाधिकार से जोङते हुए मुद्दे को एक महत्वपूर्ण आयाम देने की अह्म कोशिश की थी। माना था कि स्वच्छ हवा का आधिकार सभी को है; एक नवजात शिशु को भी और गर्भस्थ शिशु को भी। यह सेहत के अधिकार से जुङा मसला भी है और तंबाकू प्रभावों के बारे में शिक्षित होने से जुङा भी। लोगांे को इसके बारे में सही सूचना पाने का अधिकार है। लोगों को इसके दुष्प्रभाव से उबरने का अधिकार है। ऐसे तमाम अधिकारों की रक्षा का हवाला देते हुए आयोग ने जनस्वास्थ्य की दृष्टि एक उच्च स्तरीय नीति की सिफारिश की थी। कहा था कि तंबाकू नियंत्रण हेतु एक नोडल एजेंसी बनाई जाये। 
ऐसे तमाम प्रयासों से चेतना निस्संदेह बढी है, लेकिन विरोधाभास बड़ा है कि उपभोग करने वालों की संख्या फिर भी कम नहीं हुई है।
 
संकेत साफ है कि नियंत्रण कानून या सरकार से नहीं, स्वयं समाज की कोशिशों से संभव होगा। तंबाकू की गंध और धुंआ दूसरों को कम नुकसान नहीं करती। अतः आप तंबाकू सेवन करते हों या न करते हों; प्लीज! तंबाकू का नशा करने वाले को करना शुरु कीजिए रिजेक्ट, और कहना शुरु कीजिए - नो।
 
संकल्प का कोई विकल्प नहीं। आइये, संकल्प करें।
संपादकीय टिपण्णी -
तम्बाकू और इसका इस्तेमाल प्राचीन काल से होता चला आ रहा है, हाथ से बने और नशे,  मनोरंजन के लिए इस्तेमाल होते इस व्यसन को अति उपभोक्तावाद, बड़ी बड़ी फैक्ट्री में ज़बरदस्त उत्पादन, विज्ञापन और आधारित अर्थशास्त्र ने हद से बाहर पहुंचा दिया है . एक दिन भर बैठे रहने वाली जीवन शैली के साथ तम्बाकू के इस्तेमाल को वीर रस से जोड़ पिछले दशक में प्रचार माध्यमों के नए अध्याय ही लिख दिए थे. सत्तर के दशक में  आफिसों, हवाई ज़हाज़ों इत्यादि में सिगरेट इत्यादि का आम इस्तेमाल किया जाता था, सैनिक से ले कर जेम्स बांड तक को इसी रंग में रंगे देखा गया. कैंसर के आगमन और सीधे जुड़ाव के बाद पश्चिमी समाज ने इस्तेमाल कम करना शुरू किया.  
गौर से देखें तो आज कल की नीरस, तनाव भरी दिनचर्या में सिगरेट इत्यादि एक क्षणिक विरक्ति का आभास देते हैं , लगातार कमज़ोर होते तन और आराम खोज़ते मन इसी क्षणिक रासायनिक विरक्ति को ही मुक्ति, आज़ादी, वीरता इत्यादि से जोड़ इसका पान करते हैं . ज़र्ज़र होती आत्मशक्ति की कमजोरी इतनी बढ़ जाती है की टैक्स बढ़ा देना, कैंसर के चित्र छाप देना इत्यादि भी कोई असर नहीं करते. क्या सिगरेट का इस्तेमाल एक जन स्वास्थ्य की समस्या है, या इसके पीछे कुछ बड़े सामाजिक, आर्थिक कारण हैं जिसने आम जन को इतना कमज़ोर कर दिया है , की भीमकाय मशीनों से सुनामी की तरह निकलते इस नशे के गुलाम बने बैठे हैं.  पाबन्दी, नशा बंदी इत्यादि सिर्फ विद्रोह ही पैदा करेगा, असर नहीं. ज़रुरत है सामाजिक बदलाव की, जन जागरण से ज्यादा नशे के इस्तेमाल के मूल कारणों की खोज की .

 

Read in {{ agprofilemodel.altlanguage }}
Leave a comment.
Subscribe to this research.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

Join us on the latest researches that matter.

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

Responses

{{ survey.name }}@{{ survey.senton }}
{{ survey.message }}
Reply

How It Works

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
Connect & Follow.

With more and more connecting, the research starts attracting best of the coordinators and experts.

start a research
Build a Team

Coordinators build a team with experts to pick up the execution. Start building a plan.

start a research
Fix the issue.

The team works transparently and systematically fixing the issue, building the leaders of tomorrow.

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

How can you make a difference?

Do you care about this issue? Do You think a concrete action should be taken?Then Connect With and Support this Research Action Group.Following will not only keep you updated on the latest, help voicing your opinions, and inspire our Coordinators & Experts. But will get you priority on our study tours, events, seminars, panels, courses and a lot more on the subject and beyond.

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे कनेक्ट का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
Communities and Nations where citizens spend time exploring and nurturing their culture, processes, civil liberties and responsibilities. Have a well-researched voice on issues of systemic importance, are the one which flourish to become beacon of light for the world.
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
Share it across your social networks.
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

Every small step counts, share it across your friends and networks. You never know, the issue you care about, might find a champion.

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

Got few hours a week to do public good ?

Join the Research Action Group as a member or expert, work with the right team and make impact. To know more contact a Coordinator with a little bit of details on your expertise and experiences.

क्या आपके पास कुछ समय सामाजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

Know someone who can help?
क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
Invite by emails.
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 6{{ agprofilemodel.currag.id }}

More on the subject.

Follow