गंगा जो हमारे भारत देश की पहचान व जीवनदायिनी है, यहां का प्रत्येक नागरिक अत्यंत शान के साथ कहता है कि हम उस देश के निवासी है जहां गंगा बहती है। वही गंगा जिसे कालांतर में राजा भागीरथ सैकड़ों वर्षो की तपस्या के बाद अपने पितरों की मुक्ति हेतु स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर लेकर आये थे। आज वही गंगा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
14 जून 1986 में राजीव गांधी ने गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान शुरु किया था। गंगा सफाई के लिए अब तक करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हंै, फिर भी गंगा मैली कुचैली दिखाई देती है। इसको स्वच्छ करने के लिए आमजनता से लेकर वैज्ञानिक तक लगे हुये है। आज ये गंगा अपने पुत्रों से करुण पुकार लगा रही है कि मुझे मैला क्यों कर रहे हो। आज इसके गर्भ में समूचे संसार का कूड़ा-करकट, मल-मूत्र, कारखानों से निकलता जहरीला द्रव्य, रासायनिक जल, जहरीली गैसें, अधिकांश महानरों व ग्रामों का गंदा पानी, नित्य प्रतिदिन काटे जा रहे पशुओं का अवशेष व उनका मलवा, अरबांे-खरबों टन कचरा सभी कुछ इसके गर्भ में समाहित किया जा रहा है और घरों में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों की पूजा सामिग्री भी आस्था और धर्म के नाम पर इसमें ड़ालते चले आ रहे हैं। गंगा का पानी पीने लायक तो छोड़िए, नहाने और खेती करने लायक भी नहीं बचा है। अब तक गंगा को बचाने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित होती रही हैं। गंगा पहाड़ों से निकल कर गंगा मैदान की तरफ निकलती है।
धार्मिक नगरी हरिद्वार जो कि गंगा को गंदा करने की पहला बदनाम शहर कहा जाता है कि गंगा पाप धोती है। लेकिन हरिद्वार शहर गंगा की गंदगी को साफ करता नजर नही आता है। वही गंगा को बीमार करने वाले शहर के तौर पर कानपुर को कहा जाता है। एबीपी न्यूज के अनुसार हर साल यहां गंगा में प्रदूषण बेहद खतरनाक हद तक पाया जाते हंै। एमपीएन कोलीफॉर्म टेस्ट में कानपुर में गंगाजल एक बार फिर फेल हुआ है। कानपुर में दाखिल होते वक्त ये आंकड़ा 35,000 जबकि कानपुर से बाहर जाते वक्त 54,000 है। यानी कानपुर शहर के गंगाजल में बैक्टीरिया पनप रहे हैं व बढ़ रहे हैं। फीकल कोलीफॉर्म टेस्ट में भी कानपुर में दाखिल होते वक्त ये आंकड़ा 2,800 तथा कानपुर से निकलते वक्त 2200 है। यानी मल से उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया कुछ कम होते नजर आते हैं। लेकिन पानी में ई-कोलाई बैक्टीरिया की मौजूदगी है।
उत्तर प्रदेश के कुल सात शहरों से 11 नमूने लिए गए लेकिन बैक्टीरिया के मामले में सबसे खराब पानी वाराणसी में मिला। यहां एमपीएन कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की तादाद बेहद चैंकाने वाली थी। 100 एम.एल गंगाजल में वाराणसी में गंगा को दाखिल होते वक्त 1,40,000 तक बैक्टीरिया पाए गए तथा निकलते वक्त ये बढ़ कर 3,50,000 तक पहुंच गए। पानी में फीकल कोलीफॉर्म यानी मल से उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया भी बेहद तेजी से बढ़ते नजर आए। साफ नजर आ रहा है कि वाराणसी में गंगा की शुद्धि के लिए किए गए काम किसी काम नहीं आ रहे हैं। वाराणसी के गंगाजल में इन बैक्टीरिया के अलावा ई-कोलाई, रेत, आयरन, मैंगनीज और कॉपर भी काफी मात्रा में पाया गया।
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में भी गंगाजल की स्थिति बहुत खराब है उसमें पाए गए एमपीएन कोलीफॉर्म 1,70,000 है जो सामान्य से कहीं ज्यादा है जबकि फीकल कोलीफॉर्म 54000 है। इसी तरह रेत, आयरन, मैंगनीज और पानी में शीशे की मौजूदगी भी पाई गई। कुल मिलाकर हरिद्वार से बलिया तक यही नतीजा निकला कि उत्तर प्रदेश में ही राम की गंगा ज्यादा मैली है। अब भारत में गंगा अपने अस्तित्व की लड़ाई लग रही है और अपने पुत्रों को आवाज लगा रही है कि जल्द ही मेरी रक्षा हेतु कदम नही उठाये गये तो वह अपना अस्तित्व खो देगी। कुछ गंगा के पुत्रों ने उसकी रक्षा के नाम पर मिलने वाले धन को ही अपनी जीविका चलाने का जरिया बना लिया है। जल्द ही गंगा के इस दर्द को उसके पुत्रों ने गंभीरता से नही लिया तो वह दिन दूर नही जिस दिन गंगा मां अपना अस्तित्व खो चुकी होगी। इसकी मृत्यु के बाद इसके किस्से कहानियों और किताबों में नजर आयेगें, और गंगा का अतित्व पृथ्वी से विलुप्त हो जायेगा।
मिलकर संघर्ष करे गंगा माता के लिए
गंगा एक नदी ही नही है, धरती पर ईश्वर का चमत्कार है। आज हम अपने माता-पिता और परिवार के लोगों की रक्षा करते है फिर अपनी इस गंगा माता की रक्षा करने के लिए क्यों कुछ नही करते हंै। गंगा को दूषित करने वाली फैक्ट्रीयों व कम्पनीयों ने कभी ये सोचा है कि जिस गंगा माता को हम दूषित कर रहे है, आने वाले पीड़ियों को हम यही बतायेगें यह गंगा माता जो कि कभी चमत्कार की धनी और इसका पानी अमृत कहा जाता था। जो जल आज हम अपने घरों में रखते है अब यह इतना दूषित हो चुका है कि ये किसी योग्य नही हैं। आज हम सभी को मिलकर एक साथ ये संकल्प लेना होगा कि अब हम गंगा को किसी भी कीमत पर गंदा व दूषित नही होने देगें।
ऐसे तो नही रुक पायेगा नदीयों का प्रदूषण
गंगा को हमारे देश का जल संपदा का प्रतीक माना जाता है। जो कि हमारी जीवनदायिनी भी है, आज हम इस गंगा मां को भुला बैठे है, चिंताजनक बात यह है कि गंगा और यमुना जैसी नदीयों का प्रदूषण बेहद गंभीर रुप ले चुका है। ऐसा नही है कि इसके प्रदूषण रोकने के प्रयास नही किये जा रहे है, लगातार प्रयासों के बाद आज तक हमें निराशा ही प्राप्त हुई है। गंगा और यमुना जैसी नदियों को उच्चतम प्राथमिकता देकर उनमें प्रदूषण रोकने के लिए विशेष एक्शन प्लान बनाए जाये जो इन नदीयों को प्रदूषण मुक्त करने की उम्मीद प्रदान करें। सीवेज व्यवस्था के माध्यम से घरों के मल-मूत्र एवं उद्योगों के खतरनाक द्रव्यों को नदियों में बहाया जाता है। क्या इन गंदगीयों को नदीयों में बहाया जाना ठीक है।
कितना गलत है कि हम मल-मूत्र को हम प्रतिदिन उस नदी की ओर बहाते है जिसे हम पवित्र मानते हैं। क्या उस आस्था का अपमान नही होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि मल-मूत्र व औद्योगिक कारखानों से निकलने वाले जहरीले द्रव्य को नदीयों में न छोड़े तो कहां छोड़े? क्या यही इसका विकल्प है? वर्तमान व्यवस्था को देखते हुए विकल्प उपलब्ध हैं, पर वे विकसित तभी होंगे, जब उनकी जरूरत पर समुचित ध्यान दिया जाए।
हमें अपने किसी भी एक यूनिट, बस्ती व मोहल्ले का सीवेज नियोजन इस आधार पर हो कि उस यूनिट में जितनी भी सीवेज इकठ्ठा किया जाता है, उसको उस यूनिट के अंदर ही खपाया जाएगा, उसके बाहर नहीं भेजा जाये। इसमें से पानी की री-साइकिलिंग जितनी भी संभव हो सकती हो उसे किया जाये, सिचाई के लिए पानी को अलग और उसमें से निकलने वाले खाद को अलग किया जाये। उद्योगिक कारखानों से निकलने वाले जहरीले पानी को ट्रीटमेंट करने को कहा जाये।
हम सभी अपने-अपने घरों में सीवेज की गंदगी को फलश के माध्यम से साफ तो कर देते है और ये सीधा उन नदीयों की तरफ मोड़ दिया जाता है जो हमारी जीवनदायिनी है। जिससे रहने वाले जीव-जन्तु मर रहे है जिससे वह पानी दूषित हो रहा है इससे लगातार पेयजल का संकट उत्पन्न होता नजर आ रहा है। हमें अब एक आवाज उठानी होगी। एक मंच पर आकर सरकार के साथ मिलकर गंगा को स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त कराना होगा।
मौ.इरशाद सैफी