मोदी का ऐतिहासिक फैसला
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2016 के दौरान कुछ ऐसे फैसले और बातें की जिसे भारत के इतिहास में ना पहले लिए गए थे और ना ही कहे गए थे. अक्टूबर को गोवा में हुए ब्रिक्स देशों के समिट के दौरान सार्वजनिक मंच से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यातक देश कहना मोदी का एक साहसिक कदम था. यहीं नहीं पाकिस्तान के सीमा में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देना भी पहली बार ही हुआ था जिसने दुनिया को यह बताया की भारत अपने देश में घुसपैठ और आतंकवादियों को सह देने वाले देश के प्रति अब खामोश बैठ कर तमाशा नहीं देखेगा. नोटबंदी जैसे कड़े फैसले (सही या बुरा हम इस पर बात नहीं कर रहें) लेकर मोदी ने देशभर को ही नहीं दुनिया को भी चौंकाया, भारत में पहले भी धीरे-धीरे कर के पुराने नोटों का विमुद्रीकरण किया गया था पर इस तरह से अचानक लिया गया फैसला लोगों को भोचक्का कर गया. अपने कार्यकाल संभालने के बाद से मोदी 2016 में बिलकुल अलग ही नज़र आए. ऐसे में मोदी को ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ के लिए नोमिनेट किया गया तो कोई आश्चर्य नहीं.
18 प्रतिशत वोट के साथ मोदी रहे सबसे आगे
टाइम पत्रिका अमेरिका की ही नहीं दुनिया की भी प्रतिष्ठित पत्रिका है. हर वर्ष यह पत्रिका दुनिया भर के सबसे प्रभावशाली लोगों को चुनता है. इसके लिए वह ऑनलाइन पोल करवाता है और बाद में अंतिम निर्णय उनके कुछ संपादक मिल कर लेते हैं. इस वर्ष पोल में कई चर्चित और दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ने वाले राजनेता, कलाकार और विभिन्न वर्गों के प्रभावशाली लोगों को शामिल किया गया था. इनमें से एक नाम भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी है. लगातार चौथे साल भी टाइम ने मोदी को इस लिस्ट में जगह दी. ऑनलाइन वोटिंग यानी रीडर्स पोल में लोगों से पूछा गया कि उनके हिसाब से 'पर्सन ऑफ द ईयर' कौन है? रविवार देर रात चले इस वोटिंग में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सबसे शीर्ष पर रहा और उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, हिलेरी क्लिंटन, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जुलयिन असांज जैसी हस्तियों को कहीं पीछे छोड़ दिया. उन्हें 18 प्रतिशत वोट मिले जो दूसरों से कहीं ज्यादा हैं. इस पोल में ट्रंप, ओबामा और पुतिन जैसे बड़े नामों को को महज 7 प्रतिशत ही वोट प्राप्त हुए. टाइम पत्रिका के अनुसार मोदी को सबसे ज्यादा वोट भारत से प्राप्त हुए साथ ही कैलिफोर्निया और न्यू जर्सी से भी उन्हें बेहद वोट मिलें.
आम लोगों के चंदे से भी चलती हैं राजनीतिक पार्टियां
यकीनन लगातार चार वर्षों से मोदी को टाइम पत्रिका में जगह मिलना एक बड़ी बात हो सकती है मगर इस वर्ष के साथ 2014 में भी उन्हें 16 प्रतिशत वोट मिले थे और उन्होंने यह पोल जीता था मगर ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ नहीं बन पाये थे. अब हमें यहां यह समझने की जरुरत है कि दुनियाभर से लोगों को इस पोल के लिए चुना जाता है इसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या में वोट प्राप्त होना एक आश्चर्य है. हमें यह पता है कि मोदी जी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बेहद सक्रिय हैं, उनके और बीजेपी के लिए पूरा साइबर सेल काम करता है. घंटों लोग इसपर लगे रहते हैं. ऐसा सिर्फ बीजेपी के साथ नहीं बल्कि दूसरे राजनीतिक दलों के साथ भी ऐसा ही है. राजनीतिक पार्टियां इनपर करोड़ों खर्च करती हैं. और यह सर्वविदित है कि कोई भी नेता इस खर्च को अपने जेब से वहन नहीं करता बल्कि पार्टी को मिल रहे चंदे से इस रकम को भरा जाता है. इसमें से एक बड़ा हिस्सा बड़े-बड़े उद्योगपतियों का हो सकता है किन्तु इसका कुछ हिस्सा उन आम लोगों का भी होता है जिन्हें उन पार्टियों पर विश्वास होता है. जिन्होंने इन पार्टियों को यह सोच कर चंदा दिया होता है कि उनके जीतने के बाद वह देश के हित के लिए काम करेंगे मगर अफसोस ऐसा कुछ हो नहीं रहा.
अगर मोदी ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ चुने गए तो?
ऐसा मान लिया जाए कि मोदी ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ चुन लिए जाते हैं. अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि इससे देश को क्या फायदा हुआ? इससे देश के विकास में कितना बल मिला? देश की अर्थव्यवस्था को क्या लाभ हुआ? आप सभी का जवाब शायद कुछ भी नहीं में होगा. मगर अब इसका जवाब कौन देगा की टाइम के पोल शुरू होने के बाद से खत्म होने तक के दौरान जिस तरह से मोदी जी के लिए वोट मांगने और वोट करने की प्रक्रिया चली. इसमें जितने धन-बल-समय लगाए गए उसका आखिर सकारात्मक पक्ष क्या रहा. शायद कुछ भी नहीं बल्कि अगर इसी धन-बल-समय को कहीं और हितकारी कार्यों में लगाया जाता तो इसका फायदा चाहे वह जरा सा ही हो देश को जरुर मिलता.
मोदी अगर ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ नहीं चुने गए तो?
अब ऐसा माना जाए कि मोदी जी को ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ नहीं चुना जाता है तो, क्या? यहां यह बताना जरुरी है कि ऑनलाइन पोल का नतीजा ही अंतिम नतीजा नहीं होता है. इसके बाद भी टाइम पत्रिका के संपादकों का एक मंडल यह फैसला लेता है कि किसे ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ चुना जाए. पहले के फैसले भी इसी और इशारा करते हैं कि पाठकों के फैसलों के बाद भी संपादकों ने बार-बार पाठकों की पसंद के इतर अपना निर्णय लिया है. पहली बार जब वर्ष 1998 में ऑनलाइन पोल शुरू हुआ था, तब उस समय के मशहूर पहलवान मिक फोली को पाठकों ने अपनी पहली पसंद के तौर पर चुना था और उन्हें 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे लेकिन टाइम ने उस वर्ष भी पाठकों की पसंद को दरकिनार करते हुए बिल क्लिंटन और केन स्टार को पर्सन ऑफ द ईयर चुना था. यहीं नहीं वर्ष 2014 में भी मोदी को ऑनलाइन पोल में सबसे ज्यादा मत प्राप्त हुए थे मगर संपादकों की टीम ने उन्हें पर्सन ऑफ द ईयर’ नहीं चुना. अब अगर इस वर्ष भी ऐसा ही होता है तो? तो एक पूरी टीम जो इसका प्रचार प्रसार कर रही थी उसके साथ देश के काम आने वाला बहुमूल्य समय, लगे धन और बल सभी व्यर्थ ही जायेंगे.
जन-धन-समय का हो रहा दुरूपयोग
हमें देश के प्रधानमंत्री के कार्य क्षमता को लेकर कोई संशय नहीं. जिस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान एक भी छुट्टी नहीं ली और निरंतर कार्य करते रहे हैं वह बेहद प्रशंशनीय है. मगर वर्क फोर्स के बेजा इस्तेमाल के साथ समय और धन की यह बर्बादी किसी भी तरह से तार्किक नहीं है वह भी तब जब इस देश की एक बड़ी आबादी को दो जून तक का भोजन नसीब नहीं हो पाता है. आलम यह था कि इन दिनों जो भी लोग व्हाट्सअप, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया साईट पर एक्टिव रहें होंगे उन्हें राष्ट्रहित के नाम पर, देश के नाम पर और भी कई तरीकों से अपील करता हुआ संदेश मिला होगा कि नरेन्द्र मोदी को ‘टाइम पर्सन ऑफ द ईयर’ चुनने के लिए वोट करें. पोलिंग के दौरान इस प्रकार के कई मैसेज लोगों को निरंतर प्राप्त होते रहे हैं. यह इस बात को दर्शाता है कि कितने लोग इस कार्य में लगे होंगे. अगर देश और राष्ट्रहित की ही सोचें तो जो भी लोग इस प्रकार अपना बहुमूल्य समय इन कामों में लगाते हैं वह अगर अपना समय देश के प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान में भी लगाते तो शायद भारत का काया पलट हो जाता. यही नहीं काश वह लोग हमारे प्रधानमंत्री से ही समय के महत्व को समझ पाते.
विवादित नामों से भी जुड़ा रहा है ‘पर्सन ऑफ द ईयर’
यहां इस बात पर भी गौर किये जाने की जरुरत है कि टाइम पत्रिका के हिसाब से 'पर्सन ऑफ द ईयर' का आखिर मतलब क्या होता है. बहुत सारे लोग इसे महान कार्यों से जोड़ कर देखते हैं जबकि ऐसा ही है यह सही नहीं. टाइम के अनुसार 'पर्सन ऑफ द ईयर' का अर्थ उस व्यक्ति, घटना या वस्तु को लेकर है जिसने उस पूरे वर्ष के दौरान अपनी कार्य या गतिविधियों से पूरे विश्व भर पर असर डाला हो. यह असर सकारात्मक और नकारात्मक अर्थात अच्छा या बुरा दोनों हो सकता है. और यही कारण है की एडोल्फ हिटलर, जोसेफ स्टैलिन और अयातुल्लाह ख़ोमेनी जैसे विवादित नाम भी पर्सन ऑफ द ईयर बने चुके हैं.
राष्ट्रभक्तों से अपील
खैर जो भी हो मगर हमारी अपील हैं उन राष्ट्रभक्तों से जो लोगों से राष्ट्रभक्ति की दुहाई देते फिरते हैं कि वह अपनी उर्जा का इस्तेमाल वाकई में देश बनाने में करें. अपने धन-बल-समय का कुछ हिस्सा राष्ट्र के लिए दें. देश के विकास में हम सबकी जिम्मेदारी उतनी ही है जितना की हमारे देश के प्रधानमंत्री की. BallotboxIndia की तरफ से मोदी जी को शुभकामनाएं की उन्हें 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना जाये.
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_ स्वर्णताभ