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भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.

  • भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.
  • Nov 8, 2018

कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों में बंटे हुए थे, साल की पहली तिमाही होली, दूसरी रक्षा-बंधन और तीसरी दिवाली और इन्ही के बीच में बाकि सब कुछ.

इन्ही त्योहारों और ऋतुओं के मेल से लगा हुआ फसल काटने का समय, और उसी फसल को पूजने का समय.

दीपावली में सरसों के तेल के दिए ना जलें तो सर्दी में किस किस तरह के जीवाणु कितनो को ही लील ले जाएँ कहना मुश्किल है. वहीँ होली की सफाई, धुलाई, प्रेम व्यवहार ना हो तो वसंत उतना सुहाना नहीं बीतेगा.

कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों
में बंटे हुए थे, साल की पहल

इतिहास देखें तो बस दो हज़ार साल पहले ही, जब “संगठित धर्म” का उभार नहीं हुआ था, संसार सिन्धु पूर्व जैसी ही प्रकृति की शक्तियों के साथ सहस्तित्व और उससे जुड़े विज्ञानं और उससे जुड़े दिन, दिवस त्यौहार मनाता था.

कर्म कांड और उससे जनित भ्रांतियों को हटा दें तो, और सिर्फ निरंतरता के उदहारण की तरह लें तो बड़ी अचरज़ की बात है- की जिस तरह सर्दी की शुरुवात में आने वाली दीवाली पर यमराज का दिया घर के बाहर रखा जाता है, उसी तरह पुरानी यूरोपियन संस्कृति से चले आ रहे तरीकों में “जैक ओ लालटेन” यानि कोंहड़े के अन्दर एक दिया जला कर घर के बाहर रखा जाता है, यमलोक से आने वाले जैक के लिए. शायद यूरोप में यमदूत का नाम जैक ही होगा.

कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों
में बंटे हुए थे, साल की पहल

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नवरात्रों के आस पास ही यहूदियों का शब्बत भी शुरू होता है, पित्र पूजने के समय के आस पास ही हेलोवीन, यानि मृत आत्माओं का दिवस भी मनाया जाता है. यहाँ पिंड दान होता है वहीँ पश्चिम में बच्चों को दरवाजे से मिठाई इत्यादि दे कर विदा करते हैं.

वैलेंटाइन डे और वसंत-उत्सव बिलकुल एक ही जैसे दो संतों या देवताओं के बारे में है. इजिप्ट के पिरामिड और उसके विभिन्न द्वार भी मृत राजाओ के गरुण जैसे उड़ने वाले देव (Nekhbet-The Vulture Goddess of Heaven) पर सवार हो कर स्वर्ग जाने के रास्ते ही बनाते हैं, ये उसी तरह ही है जैसे श्राद्ध में पढ़ा जाने वाला गरुण पुराण.

कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों
में बंटे हुए थे, साल की पहल

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वैदिक सोच की मानें तो सब उस समय और जगह के हिसाब से बने मंत्र और ऊर्जा के स्वरुप को बदल सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने लिए बने हुए तरीक़े थे.

कुछ और उदाहरण लें तो.

सप्ताह के दिन जैसे मंगलवार यानि ट्यूसडे पूर्व हो या पश्चिम में एक ही बात है, मंगल यानि युद्ध के देवता यानि मंगल गृह, ट्यूसडे यानि तिउ का दिन, तिउ यानी यूरोपियन युद्ध का देवता जिसका भौतिक प्रकार भी मंगल गृह यानी मार्स है.

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कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों
में बंटे हुए थे, साल की पहल

संडे यानि रवि-वार सूर्य देव का दिन. हिन्दू, रोमन, इजिप्ट सब सूर्य, अग्नि, जल इत्यादि के उपासक और सहस्तित्व में विश्वास रखते थे.

सिन्धु पश्चिम पर टिपण्णी ना करते हुए, सिन्धु पूर्व में “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की संस्कृति और राम और कृष्ण का आध्यात्म, सात्विकता, अहिंसा, सत्य, धर्म अनुसार कर्म की जीवन शैली पर ज़ोर. प्रकृति और उससे जनित सकारात्मक शक्ति के साथ मिल जुल कर रहने की सोच रही है.

आज भले ही विश्व की सबसे शक्तिशाली आर्थिक और सैनिक शक्तियों के अध्यात्म में उगते सूर्य को शैतान (बाल, रॉ, समाश, मिथरस इत्यादि) का घर, और सूर्य, शक्ति, प्रकृति की संस्कृति से जुड़े लोगों को पिछड़े हुए, शैतान के उपासक इत्यादि मानते हैं, रंग, रौशनी त्योहारों को शैतान का फेंका हुआ जाल कह सबको इनसे दूर जाने को कहते हैं.  

एक समय ऐसा भी था जब पूरा संसार सूर्य, अग्नि, जल, वायु, धरती, वनस्पति, जीव जंतुओं के एक अनूठे सामंजस्य में बसा हुआ था. उस समय के मंदिर, पिरामिड, भवन आज भी खड़े हुए हैं, और आजके उन्नत ज़माने के फ़ोन भी जेब में रखे रखे आग पकड़ लेते हैं, हर छह महीने में नया लो.

प्रकृति के रंग विश्व से खोते जा रहे हैं और अति उपभोग, उन्माद, सेल्फी, ईर्ष्या, द्वेष, युद्ध की सोच सबके सर चढ़ती जा रही है. मुक्त बाज़ार के नाम पर लाखों लोग, जंगल, पहाड़, नदियों, जंतुओं को विध्वंशक हथियारों के नीचे चुटकी में दबा दिए जाते है, और तो और उनपर फिर सिनेमा बना कर करोड़ो का कारोबार भी कर लिया जाता है.

त्यौहार आते ही अमिताभ बच्चन अमेज़न का बिग बिलियन ले कर दौड़ पड़ते हैं. उपभोग के इस खेल में स्मॉग के नीचे दबे त्योहारों का सत्व नष्ट हो बस पटाखों के बैन, जुवे, शराब, झगड़ों, दुर्घटनाओं की ख़बर बन कर रह जाता है. श्री राम का तमाशा बना कर लोगों को सस्ता फ़ोन और फेसबुक पकड़ा कर बड़े आदमी की भक्ति में चलती पटरी पर खड़ा कर दिया जाता है.

कुछ समय पहले की ही बात है, जब त्यौहार एक दिन के कुछ घंटे नहीं, तिमाहियों
में बंटे हुए थे, साल की पहल

भारत के त्यौहार आध्यात्म और व्यग्यानिकता का एक अटूट मेल हैं. वैदिक युग से चले आ रहे हर मंत्र, हर यज्ञ, हर शंख ध्वनी, हर दिए और बाती, हर पानी की बूँद से आस पास का वातावरण आने वाले महीनों के लिए जैसे तैयार किया जा रहा हो.

दीवाली से छः दिनों में छठ आएगा जिसमे सूर्य और जल दोनों की पूजा होती है. छठ का डाला जो होता है, उसमे आप भारत की संस्कृति और जीवन देख पाएँगे. और जब तक ये पांच फल,पांच अनाज, पांच सब्ज़ी इन पांच डालों में सजे रहेंगे तबतक हमारी संस्कृति के लिए एक आस है, उम्मीद रहेगी की बचा ले जाएँगे.

धरती पर जीवन बचाने के लिए इस सिन्धु पूर्व की संस्कृति को बचाना भी ज़रूरी है. पर्व त्यौहार इसका मुख्य पहलु हैं. इनके कुछ आधार हैं जिनपर हमारे त्यौहार टिकें तब सिन्धु पूर्व की हिन्दू संस्कृति बचेगी, नहीं तो बस कर्मकाण्ड, आडम्बर, दिखावे में फंस आम जन को धरती के आध्यात्म से दूर करेगी, और अपने आध्यात्म से दूर सभ्यताएँ भटक कर प्रत्यक्ष या परोक्ष दासत्व को प्राप्त होती हैं.

अपने पर्व त्योहारों पर कुछ चीज़ों का ध्यान दें.

  • १.      ख़रीदने से ज्यादा खुद बनाने पर ज़ोर दें, या हाथ की ही बनी खरीदें. जैसे दिए, मिठाइयाँ, मूर्तियाँ इत्यादि परिवार के साथ मिल कर बनाएं.
  • २.      प्राकृतिक तरीक़ों से ही सामग्री बनाएं. मूर्ती तालाब की मिट्टी से बनती हैं तो अपने आस पास तालाबों का भी ध्यान दें. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की चाइनीस मूर्तिया ख़रीद कर पूजा पाठ का ढोंग आडम्बर कर, “लोली पॉप लागेलु” की धुन पर बेहूदा नाच करते हुए उनको अपनी नदियों में ना डालें.
  • ३.      खुद से और अपने परिवार से पूछें क्या श्री राम की तरह वैभव होते हुए भी क्या पिछला साल आपका दंभ, हिंसा और घमंड में बीता या विरक्त भाव से अपने साधनों का उपयोग समाज के हित में करने में. क्या वो रावण रहे हैं या राम?
  • ४.      खुद से और अपने परिवार से पूछें, गए साल श्री कृष्ण की सीख के अनुरूप क्या आपके तत्व ज्ञान में वृद्धि हुई हैं, और क्या उन्होंने जान बूझ कर भी अधर्म तो नहीं किया है. किसी के साथ अनाचार, कमज़ोर का शोषण इत्यादि कर दुर्योधन तो नहीं बने?
  • ५.      आपके लालच, मूढ़ व्यहार, बिना सोचे अति दोहन की सोच ने ही आज स्मॉग बन कर भारत को जकड़ा है, यह जब तक आपके सात्विक व्यव्हार से दूर नहीं हो जाता पटाखों की जगह शंख ध्वनी ही करेंगे.
  • ६.      अगली बार छठ, पर्व त्यौहार में ये ज़रूर देखेंगे की किसी भी भाग का प्राकृतिक स्वरुप बदला तो नहीं है. क्या आपका गन्ना बदल गया है, या आपके फल बड़े बड़े हो गए हैं. इनका क्या कारण है इसपर विचार ज़रूर करेंगे.
  • ७.      त्यौहार मनाने के बाद सफाई की ज़िम्मेदारी भी आपकी है.

ज़मीन से जुड़े रहें, सिन्धु पूर्व जन्म लेने से आप सिर्फ त्यौहार मनाने के हकदार ही नहीं होते, श्री राम और कृष्ण की इस भूमि की गरिमा और गंगा, कावेरी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र की सुरक्षा के भी उत्तरदायी होते हैं. हर त्यौहार इस पर विचार ज़रूर करें, क्या पता आगे जवाब देना पड़ जाए.

Image Sources -

Public Domain, Tyr By E. A. Rodrigues - The complete Hindoo Pantheon, comprising the principal deities worshipped by the Natives of British India throughout Hindoostan, Public Domain, Link

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