आप लोगों ने अपने खोखले शब्दों से हमारे सपनों और बचपने को चुरा लिया है, फिर भी मैं भाग्यशाली लोगों में से एक हूं. लोग भुगत रहे हैं, लोग मर रहे हैं, समूची पारिस्थितिकी व्यवस्था ढह रही है, हम सभी सामूहिक विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं और आप सभी लोग पैसे और टिकाऊ आर्थिक विकास की काल्पनिक कथाओं के बारे में बात कर रहे हैं. आप लोगों की यह हिम्मत कैसे हुई?
यह सवाल था स्वीडन की 16 वर्षीय स्कूल छात्रा ग्रेटा थनबर्ग का, जो उसने हाल ही में
यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट एक्शन समिट में सबके सामने रखा. आपका जो भी भागदौड़ और आपाधापी में गुजरता समय है ना, वो वास्तव में कुछ पलों के लिए ठहर जाएगा अगर आप इस बालिका के शब्दों में छिपे रोष को सुने. वह आयु जिसमें युवा हो रहे बच्चों की आँखों में अपने सुनहरे भविष्य के लाखों सपने तैरते हैं...ऐसी अबोध आयु में इस बच्ची की आँखों में उजाड़ होती प्रकृति के लिए दर्द दिखाई देता है.
विश्व भर के नेताओं को चेतावनी देते हुए ग्रेटा ने अपने भाषण के जरिये उन्हें चेताया कि आप कैसे युवाओं से आशा रख सकते हैं, जब आप खुद ही अपने स्वार्थ के चलते हमारा भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. वर्तमान के इस भौतिकवादी समय में जब पर्यावरण मुद्दें की गंभीरता को अनदेखा करके हमारे वैश्विक नेता बड़ी से बड़ी योजनाओं का खाका तैयार कर रहे हैं, ऐसे में ग्रेटा के सवाल और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी उसकी मुहिम हमें चौंकाती है और कहीं न कहीं हम सभी को विवश करती है कि हम सभी सोचें, विचारें कि हम आखिर उस धरती को दे क्या रहे हैं? जिसके बिना हमारा सांस लेना भी संभव नहीं है.
स्वीडन की निवासी ग्रेटा आज दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की मुहिम चलाने वालों के लिए प्रेरणा बन गयी है. स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट कहें या फ्राइडे फॉर फ्यूचर अभियान, इसके जरिये ग्रेटा की आवाज उस हर एक व्यक्ति तक जा रही है, जो पर्यावरण संरक्षण की मुहिम से जुड़ा है.
कहां से और कैसे शुरू हुआ यह अभियान
गत वर्ष अगस्त माह में ग्रेटा स्वीडन की संसद के बाहर प्रदर्शन करने के लिए और पर्यावरण संरक्षण की अपील करते हुए अकेले ही खड़ी हो गयी थी, साथ ही उन्होंने स्वीडन के संसद में दिए अपने भाषण में स्पष्ट भी किया कि आज भले ही हम पर्यावरण के लिए किये गए पेरिस समझौते को नकार रहे हों, लेकिन इससे हमारा कल कितने बड़े खतरे में होगा, यह आज हमारे समझदार राजनेता नहीं समझ रहे हैं. हमारे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, सागरों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, उनकी उष्णता को अवशोषित करने की गति धीमी हो रही है, हमारे प्राणदायक जंगल जल रहे हैं, नदियां खत्म हो रही हैं. इन सभी खतरों को समझते हुए ग्रेटा ने शुरुआत की “फ्राइडे फॉर फ्यूचर कैंपेन” की, जिसमें स्कूली छात्र अपने आस पास के जिम्मेदार प्रतिनिधियों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए धरना देते हैं.
छात्रों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन रही हैं ग्रेटा
”मैं अकेला ही चला था, जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.”
ग्रेटा जो धरती के भविष्य को सुरक्षित रखने की मुहिम लिए कभी अकेली ही अपनी बात विश्व भर के नेताओं के सामने रखने के लिए खड़ी हो गयी थी, आज उन्हें लाखों लोगों का समर्थन मिल रहा है और वह भी विश्व भर में.
आज जलवायु परिवर्तन के लिए बेबाकी से और तथ्यपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने वाली ग्रेटा आज दुनिया भर में छात्रों को प्रेरणा दे रही हैं. गत वर्ष नवम्बर में उनका यह अभियान लगभग 25 देशों में 17 से 20 हजार छात्रों द्वारा अपनाया गया था और अगस्त में यह संख्या लगातार बढ़ते हुए 160 देशों के अंतर्गत लगभग 40 लाख तक जा पहुंची है. ग्रेटा आज अपनी आयु के बच्चों के लिए एक उदाहरण हैं और साथ ही बड़ों के लिए एक सबक कि “छोटों से भी यदि ज्ञान की बातें सीखने को मिले, तो उन्हें अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए.”
भारत में भी दिख रहा है असर
हाल ही में भोपाल के आईपीएस स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र आरुष कुमार वल्लभ भवन के सामने फ्राइडे फॉर फ्यूचर मुहिम का समर्थन करते दिखें. आरुष, जो पहले अकेले ही खड़े थे, उनकी देखा देखी मात्र तीन हफ़्तों में उनके साथ पचास छात्र और आ जुडें. जल रही धरती को रोकने के लिए अरुष और उनके साथी बस इतना चाहते हैं कि विकास के नाम पर वृक्षों का कटना बंद हो और वृक्षारोपण का कारवां शुरू किया जाये. साथ ही ऊर्जा के प्राकृतिक स्त्रोतों का उपयोग करने का चलन बढ़ाने में सरकार कदम उठाए.
आरुष अकेले नहीं हैं, जो ग्रेटा की मुहिम से प्रेरित हुए हैं, बल्कि लखनऊ स्थित
पृथ्वी इनोवेशन्स भी बच्चों को साथ लेकर इस अभियान को चलाए हुए है. नई दिल्ली के भलस्वा लैंडफिल के आस पास रहने वाले
स्लम इलाकों के बच्चें भी ग्रेटा की इस लडाई का हिस्सा बन चुके हैं, जो अपने अधिकारों के लिए सरकार से पूछना चाहते हैं कि उनके हिस्से में कूड़े का पहाड़ हो क्यों? यहां तक कि भारतीय महानगरों में इस मुहिम ने जोर पकड़ना आरम्भ कर दिया है. जो वास्तव में एक सकारात्मक कदम है, धरती को बचाने की ओर.
तो एक कदम आप भी उठाएं धरती के भविष्य की ओर
क्या हो अगर कल आपके बच्चे आपसे सवाल करें कि,
“कल जब धरती पर आखिरी वृक्ष या आखिरी जहरीली नदी ही बचेगी तो क्या हम पैसे खायेंगे और पीयेंगे?”
यकीन कीजिये आप जवाब नहीं दे पाएंगे, क्योंकि हमने किया ही क्या है? हम भावी पीढ़ी से अपेक्षाएं तो उनके अंतरिक्ष पार जाने की रख रहे हैं लेकिन धरती पर रहकर धरती को ही उजाड़कर हम उनके भविष्य के लिए केवल खतरे बढ़ा रहे हैं. एक घुटन भरे कमरे में बंद रखने की कल्पना ही हमें डरा देती है तो सोचिये जिस दिन हमारी धरती पर ऑक्सीजन नहीं होगी, जल नहीं होगा तो क्या हम या हमारी आने वाली पीढियां जी पाएंगी. कहीं हमारा स्वार्थ और मनी मेकिंग माइंड हमें धरती का सर्वनाश करने पर आमादा तो नहीं कर रहा, यह हमें विचारना होगा.
संपादकीय विशेष
ग्रेटा के प्रयास हर लिहाज से काबिले तारीफ हैं, पर सिर्फ यह कह देना भर पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को खत्म नहीं कर देता. इसके लिए हमें भी हर स्तर पर प्रयास करने होंगे और बैलटबॉक्सइंडिया की भी कोशिश जारी रहेगी कि इस मुद्दें को सरकार की और आम लोगों की पहुंच तक बनाये रखें. इसी कड़ी में हमारी बुद्धिजीवियों की टीम अपने बहुमूल्य विचार आप सभी तक पहुंचाती रहेगी और “फ्राइडे फॉर फ्यूचर” मुहिम से जुड़े आप सभी के प्रयासों का भी हम स्वागत करते हैं. आपके द्वारा किया छोटा सा प्रयास भी प्रशंसनीय है, जिसे भारतीय आवाम तक पहुँचाने में हमें गर्व महसूस होगा.