दशाश्वमेध, जहां स्थित घाटों की मनोरम छटा देश-विदेश के पर्यटकों को लुभाती है और गंगा के साथ एक अनकहा सा संबंध वाराणसी के इस हिस्से में दिखाई पड़ता है. इन्हीं पावन घाटों को मुखर करता है वाराणसी का दशाश्वमेध वार्ड, जो वाराणसी की दशाश्वमेध जोन एवं सबजोन के दक्षिण में आता है. यह वार्ड क्षेत्रफल की दृष्टि से 0.730 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. मिली-जुली आबादी वाले इस वार्ड में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 11,892 है.
इस वार्ड में आने वाले प्रमुख क्षेत्रों में टेढ़ी नीम गली, भंडारी गली, धर्मकूप
इत्यादि सम्मिलित हैं. यहां पार्षद के तौर पर भारतीय जनता पार्टी से नरसिंह दास
कार्यरत हैं, जो वर्ष 2017 से जन प्रतिनिधि के रूप में स्थानीय विकास कार्यों में
संलग्न हैं. इस वार्ड में जीविका के साधन मिले जुले हैं, यानि यहां व्यापारी वर्ग,
छोटे लघु-कुटीर उद्योगों से जुड़ी जनता, छोटे व्यापार में संलग्न लोगों के साथ साथ
नौकरीपेशा जनता का भी निवास स्थान है, जिसमें सरकारी एवं प्राइवेट दोनों ही सेक्टर
से जुड़े लोग सम्मिलित हैं.
काशी विश्वनाथ का घर है दशाश्वमेध वार्ड
वैसे तो वाराणसी का दशाश्वमेध घाट अपने आप में ही बेहद प्राचीन है, जो अपने मन्दिरों, आश्रमों, घाटों और मठों के लिए विशेषत: विख्यात है. यहां सुप्रसिद्द बाबा काशी विश्वनाथ का मंदिर स्थित है, जिसमें दर्शन करने हेतु वर्षभर श्रृद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. इसके साथ ही विशाकाशी मंदिर भी इस वार्ड की शोभा में चार चाँद लगाता है. यहां स्थित दशाश्वमेध घाट, मनमंदिर घाट, राजेंद्र प्रताप घाट, शीतला घाट, ललिता घाट, अहिल्याबाई घाट, मीरघाट भी यहां प्रसिद्द टूरिस्ट स्पॉट्स के तौर पर देखे जाते हैं. साथ ही यहां मंदिरों की संख्या भी काफी अधिक है, जिसके कारण दूर दूर से भक्तगण यहां आते ही रहते हैं. बनारस में यदि आपको त्यौहारों की असल रंगत देखनी हो तो आप इस वार्ड का रुख कर सकते हैं क्योंकि शिव की नगरी काशी के मूल निवासी अपने शहर के राजा यानि काशी विश्वनाथ महादेब के संग ही प्रत्येक त्यौहार का आनंद उठाते हैं.
जाने दशाश्वमेध घाट का इतिहास
दशाश्वमेध का अर्थ है 'दस घोड़ों का त्याग', ब्रह्माजी के द्वारा राजा दिवोदास की परीक्षा लेने के लिए मांगे गए बलिदान पर इस स्थान का यह नाम पड़ा. भगवान शिव और देवी पार्वती ने सोचा कि राजा परीक्षा में विफल हो जाएगा और अंततः वाराणसी और फिर काशी राज्य छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएगा. हालांकि, राजा के बलिदानों ने भगवान ब्रह्मा को प्रभावित किया, उन्होंने यहाँ ब्रह्मेश्वर लिंग की स्थापना की. तब से, दशाश्वमेध घाट भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ घाट है. दैनिक सांयकालीन आरती, जिसे गंगा आरती कहा जाता है, धार्मिक नृत्य कला का एक भव्य प्रदर्शन है. पाँच पुजारी कलात्मक तरीके से समारोह का आयोजन करते हैं, जिसमें बड़े दीपकों, घंटी और शंख का उपयोग किया जाता है. नदी के किनारे से मंडप को देखने के लिये तीर्थयात्रियों से भरी नौकाएँ पूरे घंटे धीरे-धीरे चलती रहती हैं और पुजारी बेंत की विशाल छतरियों के नीचे लकड़ी की चौकी पर बैठते हैं.
जनता की मौलिक सुविधाओं के तौर पर इस वार्ड में विद्यालयों, अस्पतालों, घाटों,
मार्केट इत्यादि की सुविधा है. शिक्षा सुविधा के रूप में यहां मारवाड़ी सेवा संघ
शिक्षा निकेतन, विश्वनाथ संस्थान कॉलेज, तिकमंदी शिक्षा निकेतन उपस्थित हैं. तो
स्वास्थ्य सुविधा के तौर पर यहां मारवाड़ी हॉस्पिटल के अतिरिक्त कुछ प्राइवेट
क्लिनिक्स भी मौजूद हैं. साथ ही यहाँ चितरंजन पार्क भी आम जन के भ्रमण के लिए
मौजूद है.
वार्ड की प्रमुख समस्याओं की बात की जाये तो स्थानीय पार्षद नरसिंह जी के
अनुसार उनका वार्ड काफी पुराना है तथा घाट से जुड़ा होने के कारण उसमें कोई नवीन
विकास कार्य नहीं कराया जा सकता. इसके अतिरिक्त क्षेत्र में कोई भी समस्या उत्पन्न
होती है तो 2-3 घंटे के अंदर उसका समाधान भी हो जाता है.
सफाई, सड़के, स्ट्रीट लाइट्स
सभी मूलभूत सुविधाओं पर निरंतर समय से कार्य होता है, जिस कारण आमजन को
कोई भी असुविधा नही होती. वार्ड घाटों से लगा होने के कारण इसके ढांचे को
व्यवस्थित रखना यहां के स्थानीय पार्षद की सबसे अहम जिम्मेदारी है.