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अलीगढ़ के बेसवाँ गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से जुड़ी हमारी रिसर्च रिपोर्ट

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निःसंदेह हर भारतीय ने भारत की तरक्की का सपना देखा होगा. सभी भारतवासियों का स्वप्न होगा भारत का सर हमेशा गर्व से उंचा रहे. हम विकाशील से विकसित देश की श्रेणी में गिने जा सके. मगर ना चाहते हुए भी हमारे सामने एक प्रश्न खड़ा हो जाता है कि क्या वाकई ऐसा हो पायेगा? और होगा भी तो कबतक? ऐसा कहना अच्छा तो नहीं लगता मगर अलीगढ़ के बेसवाँ गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्र पर हमारी रिसर्च के बाद ऐसा सोचना हमें बेमानी ही लगता है. 


आज भी होती है टीबी से मौत 

जो देश अपने नागरिकों के रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता उसके विकसित होने का हम ख्वाब देखें भी तो कैसे? हाल ही में हम सब ने सोशल मीडिया में वायरल एक खबर देखी जिसमें ओडिशा के कालाहांडी का रहने वाला आदिवासी व्यक्ति दाना माझी पैसे के अभाव में और अस्पताल प्रशासन द्वारा एम्बुलेंस या शव वाहन उपलब्ध नहीं करवाए जाने पर अपने पत्नी के मृत शरीर को 12 किलोमीटर तक अपने कंधे पर उठाकर चला. दाना माझी की पत्नी को टीबी हुआ था जिसके कारण उसकी अस्पताल में मृत्यु हो गई. जिस देश में टीबी से अब भी लोगों की मौत होती हो, जहां एम्बुलेंस के अभाव में शव को कंधे पर ढ़ोने पर विवश होना पड़े वैसी स्थिति में हमारा सर आखिर गर्व से कैसे उठे.

“2000 तक सभी के लिए स्वास्थ्य”, 2016 तक भी नहीं हो सका लक्ष्य पूरा  

दुनिया के बहुत सारे देशों में आज भी बहुत सारी बीमारी व्याप्त है. इसका एक प्रमुख कारण रहन-सहन के खराब हालात हैं. इसी के मद्देनज़र विश्व स्वास्थ्य संगठन ने '2000 तक सभी के लिए स्वास्थ्य' नामक एक कार्यक्रम बनाया था. सभी को स्वास्थ्य सेवा मिल पाए इस उद्देश्य की पूर्ति प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के ज़रिए हासिल किया जाना था मगर आज 16 वर्ष बीत जाने के बावजूद ऐसा हो पाए ऐसा संभव नहीं दीखता. अलीगढ़ के बेसवाँ गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्र में सुविधाओं का आभाव आपके सामने एक बस उदाहरण भर है. देश के ऐसे कई हिस्से हैं जहां स्वास्थ्य केंद्र के आभाव में रोजाना लोगों की मौत होती है. 

आइए जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होता क्या है? साथ ही आपको बेसवाँ गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हकीकत से भी रूबरू करवाने की कोशिश करते हैं -

ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की लाइफ लाइन है प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्र?

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पी एच सी) हमारे भारत के ग्रामीण स्वासस्य्थ व्यवस्था की लाइफ लाइन है. गांवों में बड़े अस्पतालों के आभाव में प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र ही लोगों के स्वास्थ्य जरुरतों के लिए आशा की किरण है. प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्र और इसके उपकेंद्रों से ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य जरुरतों की पूर्ति हो सके इसकी अपेक्षा की जाती है. 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर हद से ज्यादा बोझ

सरकार द्वारा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं के लिए तीस हजार की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध करवाया जाता है. साथ ही स्वास्थ्य उपकेंद्र पांच हजार लोगों के इलाज के लिए बने होते हैं. सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की देखभाल एक या दो चिकित्साप अधिकारी, ब्लॉक विस्तांर शिक्षक, एक महिला स्वास्थ्य  सहायक, एक कम्पाउण्डर, एक ड्राइवर और प्रयोगशाला तकनीशियन द्वारा की जाती है. यहां एक वाहन भी होता है जो छोटी शल्यस क्रियाएं करने के आवश्यएक सुविधाओं से युक्त होता है.

नियमों को ताक पर रखकर चलता है प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 

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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना व देखभाल राज्य  सरकारों द्वारा न्यूिनतम आवश्यवकता कार्यक्रम और बुनियादी न्यूथनतम सेवाएं कार्यक्रम द्वारा की जाती है. वर्तमान में एक चिकित्सा अधिकारी की सहायता 14 पैरा मेडीकल कार्मिकों द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया गया है. 6 उप केंद्रों के लिए एक प्रा‍थमिक स्वास्थ्य  केंद्र, रेफरल यूनिट के रूप में कार्य करता है. इसमें रोगियों के लिए 4-6 बिस्तर होते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की गतिविधियों में रोगनाशक,  निवारण,  पुरातन और परिवार कल्‍याण सेवाएं सम्मिलित हैं.

बेसवाँ गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हकीकत 

- यह अस्पताल तो खुद ही है बीमार

- आम जन मूल-भूत सुविधाओं से हैं वंचित

- नई बिल्डिंग का विभाग द्वारा नही किया गया प्रयोग

- डॉक्टरों बिना चलता है अस्पताल

अलीगढ़ जिला मुख्यालय से मात्र 35 किलो मीटर की दूरी पर स्थित कस्बा बेसवां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बद से बदत्तर हैं सूबे की अखिलेश सरकार भले ही शिक्षा और चिकित्सा पर दिल खोल कर सरकारी खजाने को लूटा रही हो लेकिन यहां की जमीनी हकीकत कुछ ओर ही है. बेसवां प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र पर न ही डाक्टर है और न ही अन्य स्टाफ. कहने के लिए भले ही दवा मुफ्त में मिलती हो मगर मरीजों को देने के लिए यहां दवा होती ही नहीं है. 

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जर्जर हालत में स्वास्थ्य केंद्र

अस्पताल खुद जर्जर हालत में है. भवन की हालत यह है कि कब कहां से प्लास्टर टपक जाये कुछ कहा नहीं जा सकता. डॉक्टर और दवा अगर मिल भी जाए तो मरीज अपनी सांसे थाम कर अपनी मर्ज की दवायें लेकर वापस जाते हैं. लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी से लेकर अन्य चिकित्सा अधिकारी को यह सब शायद दिखाई नही देता है.

डॉक्टर नहीं फार्मासिस्ट करते हैं यहां मरीजों का इलाज  

अस्पताल के बाहर भारी गंदगी फैली हुई है. आलम यह है कि चारों तरफ घास व झाडियां खड़ी हैं. स्टाफ के नाम पर महज एक फार्मासिस्ट ही मरीजों को देखकर दवायें देता है. जबकि प्राथमिक स्वास्थ केंद्र पर कम से कम एक या दो चिकित्साा अधिकारी, एक महिला स्वास्थ्य सहायक, एक कम्पाउण्डर, एक ड्राइवर और प्रयोगशाला तकनीशियन तो होने ही चाहिए. लेकिन इनके सापेक्ष महज एक फार्मासिस्ट, एक वार्डबॉय और एक एएनएम ही दिखती है. यह भी अपनी मनमर्जी से अस्पताल आते हैं. इस स्थिती में सूबे की अखलेश सरकार के सभी वायदे थोते नजर आ रहे हैं. 

महीनों से बिना डॉक्टर के चल रहा है यह स्वास्थ्य केंद्र

बेसवाँ के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक मनोज चतुर्वेदी का स्थानांतरण जनवरी माह में किया गया था. तब से अबतक किसी भी डॉक्टर की बहाली यहां नहीं हुई है. अब सरकार को यह बात भी अगर बतानी पड़े कि किसी स्थानांतरण के बाद उसकी जगह किसी और की नियुक्ति भी होना जरुरी है तो आप लापरवाही के इस आलम को समझ सकते हैं. प्राथिमिक स्वास्थ केंद्र डॉक्टर विहीन हो गया है महीनों बीत जाने के बाद भी यह स्वास्थ केंद्र डाक्टर विहीन चल रहा है और यहां की सभी सेवायें राम (सरकार) भरोसे.

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नई बिल्डिंग तो बनी लेकिन नही हुआ आज तक कोई उपयोग

प्राथमिक स्वास्थ केंद्र पर प्रसूतिकाओं के लिए पूरी बिल्डिंग तो सरकार द्वारा बनवाकर के तैयार करवा दी गयी लेकिन इस बिल्डिंग का आज तक उपयोग नहीं किया गया. बिना देखरेख के यह अब यह भी अपनी दुर्दशा पर आंशू बहा रहा है. खिड़कियों के शीशे भी गायब हो चुके हैं. करोड़ों रूपये सरकार के खर्च होने वावजूद भी लोग यहां मिलने वाली सुविधाओं से वचिंत है.

बदहाली का आलम समझना हो तो बस इतना कहना काफी होगा कि कोई मरीज अगर यहां इलाज करवाये तो हो सकता है उसकी बीमारी ना ठीक हो पर यह बेहद संभव है कि उसे संक्रमण से जुड़ी कोई समस्या जरुर आ जाए.

क्या चाहते हैं हम?

एक ऐसा भारत जहां अस्पताल या डॉक्टर के आभाव में किसी मरीज की मौत ना हो. रोगियों को दर-दर भटकना ना पड़े. स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर मरीजों से खिलवाड़ ना हो. शहरी इंडिया से लेकर ग्रामीण भारत तक देश के प्रत्येक नागरिक को सही कीमत पर, सही समय पर ज़रूरी ईलाज सहजता से उपलब्ध हो सके वह भी किसी मान्यता प्राप्त डॉक्टर से. एक ऐसा भारत जहां फिर किसी की मौत टीबी जैसे किसी बीमारी से ना हो, फिर कोई ओडिशा के कालाहांडी का रहने वाला आदिवासी व्यक्ति दाना माझी हो या देश के किसी भी कोने में रहने वाला कोई व्यक्ति पैसे के अभाव में और अस्पताल प्रशासन द्वारा एम्बुलेंस या शव वाहन उपलब्ध नहीं करवाए जाने पर अपने पत्नी के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर ना चलना पड़े.

क्या आपको लगता है, एक सुविधा युक्त सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आपके अपने हित में है? 

क्या आपको नहीं लगता कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार होना चाहिए?

क्या आपको नहीं लगता कि सार्वजनिक धन से चालित सभी सुविधाओं से युक्त स्वास्थ्य केंद्र आपके आस-पास हो तो आपकी और आपके परिवार की स्वास्थ्य रक्षा आसान होगी?

अगर इन सभी में आपका जवाब ‘हां’ हैं तो 

तो अगर आप डॉक्टर हैं, स्वास्थ्य के क्षेत्र में जानकार हैं, या समाजसेवी हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.

आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो, तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.

अगर आप स्वास्थ्य के क्षेत्र में जानकार हैं, और कुछ समय अपने आस-पास क्या हो रहा है, समझने, और उसे सुधारने में लगा सकते हैं, अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो बैलटबॉक्सइंड़िया से समन्वयक की तरह जुड़ें.

क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय, कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.

धन्यवाद

Coordinators @ballotboxindia.com


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