नितीश
कुमार भारतीय राजनीतिज्ञ और बिहार के मुख्यमंत्री हैं. वह जनता दल (यूनाइटेड)
पार्टी से जुड़े हुए हैं और पार्टी के अध्यक्ष भी है. लेकिन यहां तक पहुंचना उनके
लिए इतना आसान नहीं था. जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव, राजनीति में पराजय का सामना
करना, घरवालों का दबाव, बावजूद इसके नीतीश कुमार ने कभी हार नहीं मानी. जीवन में
बहुत सारी नाकामयाबियों को झेलने के बाद आज वह इस मुकाम पर पहुंच सके हैं.
नितीश कुमार एक साधारण से परिवार का असाधारण सा व्यक्ति. जिसने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी राजनीति में जाने का फैसला किया. वह हमेशा से सादगी पसंद रहे हैं. जमीनी नेता होने के साथ-साथ नीतीश को बिहार की आधुनिक राजनीति का शिल्पकार भी माना जाता है. उन्होंने बिहारवासियों को खुद पर गौरवांवित होना सिखाया, उनके स्वाभिमान को जगाया और एक नये बिहार के निर्माण का नेतृत्व किया. शायद यही कारण है कि अपने सुशासन की वजह से उन्हें देशभर में सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है. बिहार में जिस तरह उन्होंने विकास कार्य किए उसके लिए उन्हें विकास पुरुष के रूप में भी पहचान मिली है.
बिहार की राजनीति में लक्ष्य केंद्रित निशाना साधने की अद्भुत कला के कारण वह चाणक्य के नाम से भी मशहूर है. राममनोहर लोहिया की विचारधारा को मानाने वाले और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में अग्रणीय भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार ने 15 वर्षों से चले आ रहे लालू राबड़ी शासन को विधानसभा चुनावों में हरा कर खत्म किया था और पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने चुनावों में ‘नया बिहार’ का सपना दिखाकर लोगों का दिल जीता और अक्टूबर 2005 में जीत के बाद राजग सरकार का नेतृत्व किया. बिहार की धर्म और जाति आधारित राजनीति को नितीश ने बहुत हद तक बदलने की कोशिश की. चुनाव के समय बिहार में धर्म और जाति को लेकर राजनीति की जाती थी. जाति और धर्म के नाम पर राजनीतिक पार्टियों का वोट बनाने का खेल चला करता था. लेकिन नीतीश कुमार को विकास के नाम पर जनता को भरोसे में लेने का श्रेय जाता है.
यह
सब उन्हें इतनी आसानी से नहीं मिला 1975 में लगी देश में इमरजेंसी की वजह से
कांग्रेस के विरोध में जनता पार्टी बनी. नीतीश कुमार उसके एक प्रमुख नेता थे. जनता
दल के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने एक कार्यकर्ता के तौर पर की.
उनका शुरूआती सफर काफी मुश्किल भरा रहा 1977 और 1980 में उन्हें विधानसभा चुनाव
लड़ने का मौका मिला मगर दोनों ही बाहर वह हार गए. बावजूद उसके उन्होंने अपनी
हिम्मत नहीं हारी वह मैदान में लगातार डटे रहे और उनके इन्हीं प्रयासों के कारण एक
बार फिर उन्हें 1985 में चुनाव लड़ने का मौका मिला और इस बार उनकी मेहनत रंग लाई
और उन्हें जीत हासिल हुई. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा उनके कुशल
नेतृत्व क्षमता को देखते हुए 1987 में उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष चुना गया.
1989 में उन्हें जनता दल का प्रदेश सचिव चुना गया. 1990 में उन्हें पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका
भी मिला. इस बार पहली कोशिश में ही उन्हें सफलता मिली और साथ ही केंद्र में मंत्री
बनने का मौका भी. उन्होंने वीपी सिंह की संयुक्त मोर्चा की सरकार में
केंद्रीय कृषि और सहकारिता मंत्री के तौर पर केंद्र की राजनीति में प्रभावी भूमिका
निभायी.
सत्ता के गलियारों में माहिर प्रशासक के रूप में विख्यात नितीश के राजनीतिक जीवन में इसके बाद कई पड़ाव आये. नब्बे के दशक में लालू प्रसाद यादव को बिहार में सत्ता दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद नितीश को उनके नजरअंदाज करने के कारण दोनों के रिश्तों के बीच काफी दूरी बढ़ गई और दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली. इसके बाद नीतीश कुमार ने समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जार्ज फर्नाडीज तथा जनता दल से खफा 12 सांसदों के साथ अलग होकर सन् 1994 में समता पार्टी का गठन किया. समता पार्टी बनने के बाद 1995 में हुए चुनाव में नीतीश कुमार पार्टी को फिर से एक बार करारी हार झेलनी पड़ी बावजूद इसके नीतीश कुमार मैदान में डटे रहें आगे चलकर 30 अक्टूबर 2003 को शरद यादव के जनता दल और समता पार्टी का विलय हुआ और उसे जनता दल (यूनाइटेड) नाम दिया गया जिसे जेडीयू भी कहा जाता है. नीतीश कुमार जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष हैं.
जेडीयू और बीजेपी ने 2005 में मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़े और जबरदस्त जीत हासिल की. इसमें नीतीश कुमार का बहुत बड़ा योगदान रहा जिसके इनाम के रूप में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री भी बनाया गया. नीतीश कुमार के बेहतरीन काम के कारण वर्ष 2010 में भी जेडीयू और बीजेपी गठबंधन को पूर्ण बहुमत से जीत हासिल हुई. मगर यह साथ इस बार ज्यादा देर तक नहीं चल पाया. नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने के कारण नीतीश कुमार ने बीच में ही गठबंधन तोड़ लिया. आगे चलकर 2015 में जेडीयू ने आरजेडी, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अपनी जीत की हैट्रिक पूरी की और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने.
मगर लालू यादव के घोर विरोध और नया बिहार बनाने और जंगलराज हटाने को लेकर नीतीश ने जिस तरह से 2005 में सत्ता हासिल की थी, आज उन्हीं के साथ गठबंधन कर नीतीश कुमार ने अपनी छवि को कहीं ना कहीं धूमिल किया है. इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश एक अच्छे प्रशासक हैं और वह सिर्फ विकास की बात नहीं करते बल्कि विकास भी करते हैं. मगर इधर जिस तरह से बिहार में अपराध बढ़ें हैं उसे लेकर नीतीश को एक बार अवश्य सोचने की जरूरत है. नितीश कई बार कई बड़े फैसले बड़े सहजता से ले लेते हैं. अभी हाल में जिस तरह के संकेत नितीश ने आरजेडी को देने की कोशिश की है उसमें अगर नितीश कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं.