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लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट विकास कार्य – इसके इतिहास, स्थायित्व, भविष्य, आर्थिक एवं सामुदायिक प्रभाव का विवेचन और प्रासंगिक अन्तःक्षेपों की समीक्षा

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विश्व के विभिन्न देशों में प्रवास के अनुभव और विगत दस वर्षों से न्यू यॉर्क जैसे घनी आबादी वाले शहर में रहने के बाद, वो भी हडसन नदी के बिलकुल पास, हमने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि शहरी निकास नालों (सीवरेज) की सुचारू व्यवस्था किस तरह की जाती है. मानव निर्मित विकास व प्राकृतिक जल स्त्रोतों के बीच सामंजस्य कैसे बैठाया जा सकता है. और ख़ास तौर से विकसित देशों में नदी तटों का प्रबंधन कैसे किया जा रहा है.

भारत के विभिन्न शहरों के पास से गुजरने वाली नदियों के तटबंधों के विकास और अन्य सम्बंधित कार्यों का विश्लेषण नज़दीक से करने के उद्देश्य से हमारी टीम ने मार्च 2016 में लखनऊ नगर का दौरा किया जहाँ हमने गोमती रिवर फ्रंट विकास कार्य के बारे में गहराइ से जानकारी लेने का प्रयास किया. इस क्रम में हमने रिवर इकोलॉजी, हाइड्रोलॉजी और निर्माण प्रौद्योगिकी के कई जाने माने विशेषज्ञों से विस्तृत चर्चा की और वहां के कार्यरत कुछ अधिकारीयों की भी राय जानी.

हमने वहां जो देखा और अपनी शोध के दौरान सूचना के अधिकार (RTI) के अंतर्गत प्राप्त जानकारियों, उपलब्ध दस्तावेजों का गहन अध्ययन और व्यापक व्यक्तिगत साक्षात्कारों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुचे है कि इस परियोजना  से गोमती नदी की परिस्थितिकी (इकोलॉजी) को अपूरणीय क्षति पहुचेगी और इसके आस पास और इस पर निर्भर रहने वाले समुदायों के समक्ष भयावह स्थिति का सामना होना अवश्यम्भावी है. 

इस विषय पर हम कतिपय प्रासंगिक तथ्यों को पाठकों के विचारार्थ रखना चाहते है: 

·         विगत कुछ दशकों में गोमती नदी का दो-तिहाई जल की बर्बादी सिर्फ इसलिए हो गइ क्योंकि इसके जलागम क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) और इसकी 22 सहायक नदियों का प्रबंधन ठीक से नहीं किया गया. आज गोमती अत्यंत प्रदूषित स्तिथि में है और इसका संकुचन तीव्रता से हो रहा है जो शोचनीय है.

·         गोमती लगभग 940 किलोमीटर लंबी और विशाल स्थायी नदी है. ये वर्षा जल और भूगर्भीय जल दोनों स्रोतों से जल प्राप्त कर बारहों महीने बहती रहती है. अमूमन इसको बहाव धीमे ही रहता है पर वर्षा ऋतू के महीनों में इसका बहाव और जल कई गुना ज्यादा हो जाता है.

·         गोमती नदी के किनारों पर विविध जैव वनस्पतियों और जीव जंतु  का विकास हुआ है. इस ऐतिहासिक नदी के तटों पर अनेकों सुरुचिपूर्ण परिदृश्य स्थल भी हैं  और इन पर कई महान कला संस्कृतियों के उद्भव की गौरव गाथा भी लिखी गयी है.

·         विगत दशकों में बारिश की मात्रा में भी विशेष कमी नहीं हुई है और मौसम विभाग के अनुसार यहाँ 800 से 1100 मिलीमीटर प्रतिवर्ष के दर से गोमती के जलागम क्षेत्र में बारिश प्राप्त हो रही है.

·         गोमती नदी में जब बाढ़ आती है, जैसा कि हाल में सन 2008 की बाढ़ का उदहारण ले, तब कतिपय निर्धारित निरीक्षण स्थलों पर इसका जलस्तर लगभग 10-12 मीटर बढ़ता देखा गया है. बाढ़ के दौरान इसका पानी  तटबंध के दोनों किनारों को पार कर 250 से 450 मीटर चौड़ाई तक फैल जाता है.  

·         बाढ़ के दौरान जलस्तर बढ़ने से जिन नैसर्गिक नालों का पानी इसमें गिरता है वो नदी के जल दबाव से उलटी दिशा में नगर की ओर बहने लगते है. यहाँ तक कि जो 16 नाले हाई फ्लड लेवल (HFL) पर भी बने है, उनका जल निकास भी पंप के बिना संभव नहीं होता है.

·         नदी के आस पास बसे लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन के लिए ये नदी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मुख्यतः इसके जल  द्वारा ही विभिन्न भूमिगत जल स्रोतों में पानी का पुनर्भरण (रिचार्ज) होता रहता है. इसके फलस्वरूप वर्ष भर भूमिगत जलस्रोतों से दैनिक उपयोग के लिए साफ़, पीने योग्य जल का  उपयोग एक बड़ी आबादी के लिए उपलब्ध होता है.

गोमती नदी के नैसर्गिक जल बहाव में कमी सन 1970 के बाद हुई है और उसके निम्नलिखित 3 मुख्य कारण माने जाते है:

1.        शहर से निकले हुए 40 प्राकृतिक नाले जो गोमती में जल निकास करते थे वे अपने साथ लखनऊ नगर (और पास के अन्य शहरों का भी) का कचरा, औद्योगिक कचरा व ठोस कचरा सभी इसी नदी में निष्कासित करते थे. इसके परिणामस्वरूप नदी भयंकर रूप से प्रदूषित हो गयी, इसमें गाद (silt) बढ़ गयी और पानी में घुली हुई ऑक्सीजन (dissolved oxygen) की मात्रा में भारी कमी हो गयी.

2.      बेतरतीब शहरीकरण और बढती आबादी के दबाव के फलस्वरूप गोमती के किनारों का अतिक्रमण होने लगा. इससे जलागम क्षेत्र पर भी दबाव बढ़ा और नालों से बहने वाले कचरों में भी वृद्धि होती गयी.

3.      बाढ़ के समय गोमती का जलस्तर 10-12 मीटर तक ऊँचा हो जाता है अतः इसके तटबंधों को ऊँचा कर दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया कि जन आबादी को बाढ़ के नुकसान से बचाया जा सके. साथ ही गोमती बराज का निर्माण भी किया गया जिससे इसके जलस्तर को नियंत्रित किया जा सके.

 

IIT Roorkee की एक रिपोर्ट जो सन 2013 में लखनऊ विकास प्राधिकरण के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है उसमे लिखा गया है कि गाद के अनवरत भराव के कारण नदी का तल 1.5 मीटर उंचा हो गया है. जलागम क्षेत्र में अत्यधिक निर्माण व मानवीय अतिक्रमण भी इसके बहाव को बाधित करने का एक प्रमुख कारण माना गया है जिसके कारण गोमती के गाद निष्पादन की क्षमता भी कम हो गयी है.

विभिन्न सरकारी उपक्रमों द्वारा किये हुए उल्लेखनीय सुधार प्रयासों की स्थिति

1.      शहर के 23 नालों से निकलने वाले मैले जल को साफ़ करने हेतु भरवारा में 345 MLD का एशिया का सबसे बड़ा सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना सन 2011 में की गई और 22 नालों को उससे जोड़ भी दिया गया पर वो आज तक सुचारू कार्य नहीं कर पा रहा है.  

2.      समय समय पर गोमती नदी का तलमार्जन (ड्रेजिंग) भी किया जाता रहा है.

3.      इस बाबत हुए व्यय की जानकारी सार्वजनिक संज्ञान में नहीं दी गई है.

 

विगत वर्षों में गोमती एक्शन प्लान के तहत अनेक प्रयास कार्य किये गए और सन 2012 से तमाम प्रयास  गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कार्यक्रम के अंतर्गत  किये जा रहे है.

IIT Roorkee द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण के लिए सन 2013 में गोमती रिवर फ्रंट विकास के लिए एक व्यवहार्यता अध्ययन (feasibility study) किया गया जिसके प्रमुख विचारणीय बिन्दुओं को नीचे दिया जा रहा है. Report_Gomti_LDA.pdf 

·         यह अध्ययन गोमती बराज और उसके 6.8 किलोमीटर ऊपर तक रिवर फ्रंट के बनने पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए किया गया था और इसके उद्देश्य सीमित थे. इस अध्ययन में भीषण बाढ़ के समय (जैसी सन 1960 अथवा सन 2008 में आई थी) एच. ऍफ़.एल. (High flood level) में होने वाले परिवर्तन को मापना था और वर्तमान में इस्तेमाल हो रहे नालों और पुलों पर इससे पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना था.

·         इस अध्ययन में इस विषय पर विचार किया गया कि रिवर फ्रंट के निर्माण के लिए नदी की चौड़ाई का पाट अगर 250 मीटर तक रखा जाए और उसके बाद की जमीन का उपयोग रिवर फ्रंट के  विकास हेतु किया जाए तो उसका प्रभाव क्या पड़ेगा. इसमें नदी की 6.8 किलोमीटर लम्बी प्रवाह यात्रा में अनेक स्थानों पर पाट की चौड़ाई को संकुचित और विस्तृत करने की बात भी कही गयी है.

·         इस रिपोर्ट में माना गया है गोमती का एच.ऍफ़.एल. की ऊंचाई सन 1960 में नापे गए उच्चतम स्तर (112.6 मीटर) में 1.25 मीटर की बढ़ोतरी संभावित है और सन 2008 में उच्चतम माप [108.6 मीटर) के लिए भी ये ही अनुमान मान्य होगा.

·         वर्तमान तटबंधो को 1.5 मीटर और ऊँचा करने की अनुशंसा की गई है जिससे फ्री बोर्ड को हासिल किया जा सके.

·         अनुमान किया गया है कि जल बहाव की गति (water velocity) में 20% की वृद्धि होगी और नदी के तल दबाव अपरूपण (Bed Shear Stress) में 30% की वृद्धि होगी.

·         गोमती पर बने दो पुलों (रेलवे पुल और हार्डिंग पुल) को रगड़ खाने और घिसने का खतरा होगा और वे असुरक्षित हो जायेंगे.

·         हनुमान सेतु पुल का सुरक्षा अध्ययन नहीं हो पाया क्यूंकि उस पुल का नक्शा (General Arrangement Drawing) उपलब्ध नहीं कराया गया.

·         200 मीटर का विस्तार पर कोई निर्माण नहीं करना होगा क्योंकि इसे नदी के उच्चयन और अवकर्षण (bed aggradation and degradation) के लिए छोड़ने की अनुशंसा की गई है.

·         इस अध्ययन में कुछ स्थानों पर नदी के तट की ज़मीन के कुछ हिस्सों को मानव उपयोग में लेने का प्रस्ताव भी है तो कुछ हिस्सों में नयी ज़मीन को नदी के प्रवाह को सुगम्य बनाने के लिए नदी को आवंटित करने का भी प्रस्ताव है.

उपरोक्त अध्ययन में या सार्वजनिक रूप में उपलब्ध किसी भी अन्य अध्ययन में निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया है:

·         रिवर फ्रंट के निर्माण से गोमती का प्रदुषण कैसे कम होगा और इसका जल प्रवाह कैसे बढेगा?

·         क्या रिवर फ्रंट का निर्माण ही तकनीकी और आर्थिक दोनों मापदंडों पर श्रेष्ठ उपाय है? अथवा अन्य वैकल्पिक मार्ग जिसमे वर्षा जल और मल निकास जल को प्रथम चरण में ही अलग किया जाना, नदी तट को अतिक्रमण मुक्त किया जाना, नदी के जलागम क्षेत्रों और नालों का बेहतर प्रबंधन आदि सुगम उपायों से भी लक्ष्य प्राप्त हो सकता है.

·         क्या बड़े और एकीकृत मल शोधन संयत्रों के स्थान पर छोटे विकेन्द्रित मल शोधन संयंत्रों को स्थापित करना उचित नहीं होगा क्योंकि विशालकाय संयंत्रों की आशातीत सफलता ऐतिहासिक रूप से संदिग्ध ही पाई गयी है.

·         रिवर फ्रंट के निर्माण से उस क्षेत्र की जैव विविधता पर क्या हानिकारक स्थितियां उत्पन्न होगी? उदहारण के लिए कछुओं को प्रजनन और संवृद्धि के लिए नदी का जल और तटीय बालू दोनों की आवश्यकता पड़ती है. रिवर फ्रंट के लिए नदी के दोनों छोरों पर मध्यपट दीवार का निर्माण होगा (Diaphragm Wall) जिससे बालू वाले तट नहीं रहेंगे तब कछुओं के प्रजनन क्षेत्र ही लुप्त हो जायेंगे!

·         इस निर्माण से हमारे सांस्कृतिक धरोहरों जैसे मंकी ब्रिज (Monkey Bridge) पर और अन्य 20 ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण घाटों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? प्रसंगवश ये भी जानकारी देते हैं कि मंकी ब्रिज अब नहीं बचा है और किन कारणों से उसे ध्वस्त-नष्ट किया गया, इसका भी कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण लोगों को नहीं दिया गया है.

·         रिवर फ्रंट की परिकल्पना में नदी तट का व्यावसायिक विकास और सैर-विहार करने का स्थान तो हो जाएगा पर इसके लिए हमें प्राकृतिक दलदल, जंगल, जीवंत तटों, पगडंडियों आदि की कुर्बानी भी देनी होगी.

·         बाढ़ नियंत्रण के वर्तमान सोच की अपेक्षा तटों को चलायमान (mobile shores) बनाकर उन्हें प्राकृतिक अवरोध के रूप में बाढ़ को और तटों की मिटटी के क्षरण को रोकने के लिए उपयोग कितना प्रभावी व श्रेष्ठ सिद्ध होगा, इसका भी स्पष्टीकरण नहीं है.

·         अभी जो 23 नाले उपयोग हो रहे है वो शहर से बरसात के जल को बाहर निष्कासित करने के प्राकृतिक प्रवाह माध्यम है और अगर ये अवरुद्ध  होते है तो बरसाती जल से शहर के अन्दर पानी का जमाव एक बड़ी समस्या बन कर सामने उभरेगी.

·         रिवर फ्रंट बनाने के क्रम में किनारों पर सीमेंट और कंक्रीट का निर्माण होगा जिसके फलस्वरूप तमाम प्राकृतिक नाले अवरुद्ध हो जायेंगे और इनका विकल्प भी दुष्कर है. क्या हम कोई ऐसा विशाल नाला बनाएंगे जो सारे शहर के पानी का शोधन करने के लिए एकत्रित करके सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचा सकता हो?

अगर शहर के सारे प्राकृतिक वर्तमान नालों को कंक्रीट के नालों या लोहे के बड़े पाइपों में परिवर्तित किया जाएगा तो बारिश का जल भूगर्भ में कैसे पहुचाने के लिए और नदी में जल प्रवाह निरंतर बनाये रखने के लिए हमारी क्या योजना है? 

क्या ये ही विकल्प समाज के लिए श्रेयस्कर है और क्या इसमें होने वाले व्यय से हम करदाताओं द्वारा जमा किये रकम का उन्हें पूर्णोचित लाभ मिल पायेगा?

IIT Roorkee की सन 2013 की रिपोर्ट में जिस भारी मात्रा में व्यय लागत का अनुमान दिया गया है तब समझदारी ये होगी कि इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करना चाहिए. सभी लाभ और नुकसान का सांगोपां अध्ययन करना चाहिए. वैकल्पिक उपायों को भी  संजीदगी से तलाशना चाहिए और अपने कदम सावधानी से आगे बधन चाहिए, किन्तु,

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जून 2016 की यथास्थिति का ब्यौरा प्रस्तुत किया जा रहा है.

.

·         रिवर फ्रंट विकास  का निर्माण कार्य सिंचाई विभाग के आधीन हो रहा है जिसमे  १६ मीटर गहरी मध्यपट दीवार ( Diaphragm Wall) को बनाया जा रहा है और गोमती के चौड़ाई मात्र १५० मीटर (और कुछ जगहों पर तो उससे भी कम) के आसपास रह जायेगी.

·         रिवर फ्रंट की लम्बाई को 12 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया है और अखबारों की ख़बरों में आ रहा है कि इसे और बढ़ाया जा रहा है.

·         IIT Roorkee (2013) ने अनुशंसा कम से कम 250 मीटर चौड़ाई रखने की थी और उस रिपोर्ट में योजना की कुल लम्बाई 6.8 किलोमीटर तक सीमित थी.

·         चौड़ाई को बाँधने से स्वाभाविक है कि नदी के जल प्रवाह गति वेग (water velocity) एवं अन्य तकनीकी गणना को भी सीधे प्रभावित करेगा.

·         रिवर फ्रंट विकास को अब पक्का पुल से शहीद पथ ( 12 किलोमीटर) तक विस्तारित कर दिया गया है जबकि अध्ययन रिपोर्ट सिर्फ 6.8 KM तक ही सीमित थी

·         विकास कार्य में कंक्रीट के भारी भरकम शिलाओं (पवेर्स) का नदी के 150 मीटर के बाद ही व्यापक इस्तेमाल हो रहा है.

·         सीमेंट, कंक्रीट, भारी मशीनों इत्यादि के कारण वहां का तटीय तल (river bed) और पर्यावरण (इकोलॉजी) को भरी क्षति हो चुकी है.

·         समाचारों और विभिन्न प्रदर्शन चित्रपटों में दिखलाया जा रहा है कि रिवर फ्रंट में लुभावनी विद्युत रौशनी से सजावट की जाएगी और London eye झूले, पार्किंग स्थल, व्यावसायिक दुकान, प्रतिष्ठान आदि भी वहां खोले जायेंगे.

·         एक समानांतर विशाल नाले का निर्माण प्रस्तावित है जिसमे अन्य सभी नालों के निकास को एक साथ समाहित कर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाया जाएगा. विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार की योजना अव्यवाहारिक होती है क्योंकि सही अनुपात में ढलान हासिल करना दुष्कर होता है. कोई बताये कि यह प्रयास भरवारा में निर्मित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के असफल अनुभव से कैसे भिन्न है? इतने विशाल प्लांट की लागत मूल्य व परिचालन खर्च क्या है और इसका पर्यावरण प्रभाव क्या होगा? 

·         इस योजना में शारदा नहर के जल से जोड़कर नदी में  प्रवाह बनाया रखा जाएगा.

·         नदी के उपरी क्षेत्र में एक रबर के बाँध का निर्माण होगा जिसक उद्देश्य गोमती बराज और रबर बाँध के बीच ढके हुए चैनल को बनाना है.

हमने उपरोक्त बिन्दुओं का विश्लेषण किया और सम्बंधित विभागों से सूचना के अधिकार के तहत आधिकारिक जानकारी देने की याचिका दाखिल कर दी

·         दिसम्बर 2015 के समाचार पत्रों में आया कि सिचाई विभाग और IIT Roorkee के बीच एक नया समझौता करार (MOU) प्रस्तावित रिवर फ्रंट के लिए हो गया है.

Ø  मई 2016 में प्राप्त RTI के जवाब में IIT Roorkee  ने लिखा है ऐसा कोई प्रस्ताव अभी तक नहीं आया है.

·         लखनऊ विकास प्राधिकरण के मुख्य नगर योजना अधिकारी के समक्ष दाखिल हमारी RTI को उन्होंने 4 महीने के बाद अधीक्षण अभियंता (ट्रांस-गोमती) के पास जवाब देने के लिए अग्रसारित कर दिया

Ø  सिंचाई विभाग के पास हमारी उस RTI याचिका का जवाब भी अभी तक नहीं आया है जिसमे हमने प्रोजक्ट रिपोर्ट से पर्यावरण मूल्यांकन (असेसमेंट) सम्बन्धी विवरण मांगी थी.

हम चाहते है कि

ü  वर्तमान योजना की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट एवं पर्यावण प्रभाव अध्ययन सम्बन्धी सभी रिपोर्टों को सरकार सार्वजनिक पटल पर रखे जिससे विभिन्न विषय -विशेषज्ञ और आम आदमी भी इसका स्वतंत्र आकलन कर सके और सुझाव दे सके. इस प्रकार के व्यापक विमर्श से ही एक दूरगामी और कारगर हल निकलेगा.  

ü  नदी को पुनर्जीवित करने के अन्य तरीकों का भी तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए.

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समग्र समाधान के वैकल्पिक मार्ग

    रिवर फ्रंट में लागू किये जा रहे वर्तमान तरीके की विसंगतियां

. शहर के बर्षा जल निष्कासन करने के प्राकृतिक नालों को सीवरेज व्यवस्था से अलग रखा जाए.

 . वर्तमान परिस्थितिकी (इकोलॉजी) जैसे  दलदली किनारों, जीवंत घाटों इत्यादि से न्यूनतम छेडछाड की जाए और जैव विविधता को नष्ट नहीं होने दिया जाय.

. छोटे आकार के कई सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किये जाए जो विकेन्द्रित हो और उनके खराब होने पर या पुराने पड जाने पर क्या करना है, इसपर भी स्पष्ट दिशा निर्देश हो.

. नदी के जलमग्न क्षेत्र (catchment area) पर कड़ी निगरानी राखी जाय.

. अपनी संस्कृति, धरोहरों जैव विविधता को हमें अपने आने वाली पीढ़ियों के लिये सहेज कर रखना होगा जैसा विकसित देशों में किया जा रहा है. वहां बच्चों प्रकृति के साथ सह अस्तित्व में जीने की शिक्षा  बचपन से दी जाती है.

 . इस शिक्षा से देश के नागरिक में अपनी जिम्मेवारी का नया आयाम विकसित होता  है.

. सुबह सवेरे की दौड़ या सैर के लिए मानव निर्मित कंक्रीट सतह की अपेक्षा प्राकृतिक सतह बेहतर मानी जाती है. 

 

. वर्तमान परियोजना पर हो रहा व्यय अत्यधिक है और ये प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों विरासतों को उलट-पलट कर देगी

. नदियों को आपस में जोड़ने की योजना और उसके आर्थिक और पर्यावरण प्रभाव  के परिणामों पर भी संशय है.

 

३. रबर बाँध बनाने के क्या परिणाम होंगे?

. इतनी महाकाय परियोजना के पर्यावरण प्रभाव (बिजली खर्च  प्रदुषण) का भविष्य में क्या  असर होगा?

५.अगर यह परियोजना असफल हो जाती है तो इसके पर्यावरण पर होने वाले जोखिम और अससे उपजे आपदा प्रबंधन की क्या तैयारी है. 

६.अगर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों और जैव विविधता को दरकिनार कर अपने नदियों की प्राकृतिक परिस्थितिकी को बेजान सीमेंट कंक्रीट के निर्माणों में परिवर्तित करने लगेंगे तो इस का हमारे भविष्य की पीढ़ियों पर क्या असर पड़ेगा? उनका तो प्रकृति से जुडाव भी कम होने लगेगा.

. जो आबादी इन नदियों के आस पास रहती है और उनका दैनिक जीवन नदी पर कई तरह से निर्भर है, उनके आर्थिक-सामाजिक क्षति पर विचार कौन करेगा.

 

वर्तमान में इस योजना का जो स्वरुप कार्य स्थल पर बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है वो IIT Roorkee के सन 2013 के लखनऊ विकास प्राधिकरण को सौंपी रिपोर्ट से दूर भटकता जा रहा है. इस गडबडझाले का गहन अध्ययन और जांच अविलम्ब होनी चाहिये और उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए.

जो भी अभिकरण या संस्थाए इस परियोजना के रूप रेखा इत्यादि से सम्बंधित विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं के  निर्णय लेते है उनके नाम और उस मद से जुडी प्रस्तावित लागत का भी सिलसिलेवार ब्यौरा सार्वजनिक करें. उदहारण के लिए इस परियोजना में एक प्रस्ताव जिसमे बड़ी राशि खर्च होगी, वो है “कृत्रिम तलकर्षण (ड्रेजिंग) से नदी तल के गहरीकरण से  नदी की चौड़ाई की कमी की क्षतिपूर्ति”. ज्ञात रहे कि नदियाँ जीवंत होती है और कृत्रिम तलकर्षण पर शीघ्र ही बालू पुनः भर जाती है और स्थिति जस की तस हो जाती है. (ये लिपोसक्शन की तरह होती है. प्राय जो मोटे लोग अपने मोटापे की चर्बी को निकलवाते है और कुछ महीनों बाद फिर मोटे हो जाते है.)   

विश्व भर में, खासकर विकसित देशों में, नदी के ठीक किनारे रिवर फ्रंट का विकास शनै-शनै दशकों में किया जाता है जिसमे उसके आस पास के क्षेत्र का विकास प्राथमिक चरण होता है. इस विकास क्रम में यहाँ पड़ने वाले प्रभावों का लगातार अध्ययन – आकलन होता रहता है और नदी के प्राकृतिक बहाव को तो बिलकुल भी नहीं बदलने का निर्णय अटल रहता है. यहाँ रिवर फ्रंट के निर्माण में इतनी जल्दबाजी किस कारण से दिखाई जा रही है और इसके तट क्षेत्र को क्यों अतिक्रमित किया जा रहा है?  

यहाँ पर वर्तमान जैव विविधता, वनस्पतियों और जीव जंतुओं के बारे में कोई अध्ययन किया गया है?

जब यह करार तय हो चूका है कि IIT Roorkee द्वारा पर्यावरण प्रभाव अध्ययन के बिना कोई गतिविधि आगे नहीं बढ़ेगी, तब अभी वहां निर्माण कार्य कैसे शुरू कर दिया गया?

किसी भी नदी की परिस्थितिकी में गहन हस्तक्षेप एक चिंतनीय विषय है, सिर्फ दीर्घकालिक स्थायित्व और हितों के लिहाज से ही नहीं, अपितु आर्थिक, सांस्कृतिक, जैव विविधता आदि की हानि भी राजकोष को उठानी पड़ती है. गोमती गांगेय क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है और इस का प्रभाव लाखों-करोड़ों जिंदगियों से जुड़ा है.

हमारा संगठन गोमती नदी से जुडी तमाम समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान, जो सर्वहितकारी हो, की तलाश में प्रयासरत है. आइये, हम सब इस सामुदायिक कार्य में एकसाथ एकजुट होकर कुछ सार्थक परिवर्तन लाने का प्रयास करें.

सितम्बर 2016 तक हमारे द्वारा किये गए प्रयासों का संक्षिप्त ब्यौरा:

१.लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA), IIT-Roorkee एवं सिंचाई विभाग से इस परियोजना से जुडी कतिपय प्रासंगिक व आधिकारिक सूचनाएं मांगी गई. लखनऊ विकास प्राधिकरण ने हमारे अनुरोध को सिंचाई विभाग को जवाब देने के लिए अग्रसारित कर दिया है. IIT Roorkee ने जवाब दिया है कि इस परियोजना के लिए कोई भी रिपोर्ट सिंचाई विभाग को नहीं सौंपी है. 

२. पर्यावरण मंत्रालय से भी जानकारी प्राप्त करने के लिए अर्जी दी गई है. हमारे अनुरोध को सितम्बर 2016 में मंत्रालय से स्वच्छ गंगा मिशन को अग्रसारित कर दिया गया और बतलाया गया कि गोमती नदी से जुडी परियोजना उक्त विभाग के अन्तर्गत आती है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से उत्तर की प्रतीक्षा है.

३. न्यू यॉर्क, अमरीका स्थित भारतीय उच्चायोग (कांसुलेट) को इस सम्बन्ध में मदद के लिए अनुरोध किया गया. हमारी अर्जी सम्बंधित मंत्रालयों से गुजर के दिल्ली में उत्तर प्रदेश के स्थानीय कमिश्नर (Resident Commissioner) के पास 17 अगस्त 2016 को पहुच चुकी है. हमें वहां से उत्तर मिलने की प्रतीक्षा हैं.

४. हमने National River Conservation Directorate (NRCD) से भी इस पर जवाब माँगा है. उन्होंने भी इसे 20 अगस्त 2016 को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को उत्तर देने के लिए अग्रसारित कर दिया.

५. प्रधानमंत्री कार्यालय को भी जानकारी दे दी गयी है – वहां से 29 अगस्त 2016 को हमारी अर्जी प्राप्त होने की और उस पर गौर करने की बात कही गयी है.

६. हमने नीति आयोग के संज्ञान में भी ये बात लायी है. इसके प्रत्युत्तर में (8 अगस्त 2016) में कहा गया है कि जल संसाधन सलाहकार (Advisor Water Resources) हमारी अर्जी पर कार्यवाही करेंगे.

इस दरम्यान ABP News, जो भारत का एक सुप्रसिद्ध हिंदी न्यूज़ टेलीविज़न चैनल है, ने गोमती रिवर फ्रंट पर एक कार्यक्रम प्रसारित किया जिसमे इस पर हो रहे सरकारी खर्च का ब्यौरा दिया गया और नदी तटी पर जारी निर्माण कार्यों की भी दृश्य रिपोर्ट दिखाई गयी. हालांकि इस रिपोर्ट का मकसद राजनैतिक रस्साकशी को दिखलाना था कि कैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधान मंत्री के बीच इस परियोजना का सियासी श्रेय कौन ले और उद्घाटन का फीता चुनाव के पहले कौन काटता है. 

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इस न्यूज़ रिपोर्ट में साबरमती रिवर फ्रंट का भी सन्दर्भ लिया गया था जो अहमदाबाद, गुजरात में वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री, जो अभी भारत के प्रधान मंत्री है, के द्वारा विकसित किया गया था और उससे उन्हें चुनाव में भी लाभ मिला था. उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री भी इस मुद्दे से आगामी चुनाव में लाभ चाहते है. 

इस रिपोर्ट में विशेषज्ञों के विचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. विशेषज्ञों ने कैमरा के सामने इस परियोजना की सार्थकता के बारे में चिंता जताई थी पर उस पर गौर किये बिना विषय को राजनीति और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पक्ष में ले गए. सनद रहे कि मुख्यमंत्री ने यहाँ कैमरे के सामने बयान देते हुए स्वीकार किया कि गोमती नदी को संकुचित किया जाना है. 

हमने न्यूज़ चैनल के विरुद्ध अपना विधिवत विरोध दर्ज किया है कि कैसे विशेषज्ञों की राय को तोड़- मरोड़ कर दिखलाया गया है और इस गंभीर मुद्दे को सिर्फ सियासी रंग से देखने से तमाम पर्यावरण और स्थायित्व जैसे मसले गौण कर दिए गए है.

साबरमती एवं गोमती रिवर फ्रंट की समानताएं                               

·         साबरमती रिवर फ्रंट परियोजना पर भी अनेक विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों एवं सामाजिक वैज्ञानिकों ने भारी विरोध जताया था और इसकी आलोचना की थी. 

·         इस खर्चीले विकास में भी बाँध का निर्माण किया गया, चैनल नहर से साबरमती में नर्मदा नदी का पानी जोड़ा गया. साबरमती रिवर फ्रंट मीडिया में बहुचर्चित है (एक यहाँ देखें पर खोजने से बहुत है). विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना करते हुए इससे साबरमती नदी पर दुष्प्रभाव, इससे प्रभावित लोगों और संस्कृति पर घातक असर के बारे में अपनी राय रखी है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि रिवर फ्रंट परियोजना के बाद साबरमती नदी का अस्तित्व ही समाप्त प्राय है और अब ये नर्मदा नदी की एक शाखा बन गई है.

·         साबरमती रिवर फ्रंट क्षेत्र में तो जल प्रवाह बना रहे ये सुनिश्चित कर दिया है और इसको सफल परियोजना के रूप में दिखाया जा रहा है परन्तु इस भाग के ऊपरी और नीचे या बाद के क्षेत्रों में साबरमती नदी का नैसर्गिक स्वास्थ्य (प्रवाह) का ह्रास होना एक शोचनीय विषय बनकर उभर रहा है. हमें आजतक एक भी ऐसा विशेषज्ञ नहीं मिला है जो साबरमती परियोजना के इस स्वरुप पर सहमत है और गोमती परियोजना भी उसी खाके पर तैयार हो रही है.  

·         पर हाँ, राजनैतिक हलकों में इस तरह के “सेल्फी” विकास मॉडल को चुनाव जीतने का एक आजमाया हुआ हथकंडा माना जा रहा है और ABP News रिपोर्ट भी इसी बात की ओर संकेत देती है कि जनता इस लोक लुभावन स्थल पर आकर अपने परिवार या मित्रों के साथ “सेल्फी” खिंचवाते हुए खुश होगी. वस्तुतः, इसी मानसिकता से ही राजनैतिक नेतृत्व तमाम तकनीकी खामियों और दीर्घकालिक स्थायित्व की हानियों की विशेषज्ञ- राय को दरकिनार कर इसे जोर-शोर से पूरा करने की होड़ में लगे है.

·         इस गंभीर समस्या को एक अपवाद समझकर हम अनदेखा नहीं कर सकते. साबरमती परियोजना के बाद गोमती, वरुणा, हिंडोन, और ऐसी अन्य कई नदियों पर रिवर फ्रंट विकास परियोजना शुरू करने की मानो होड़ लग रही है और उसे जैसे कानूनी मान्यता भी मिल चुकी है. अब स्थितियां हाथ से बाहर जाती हुई नजर आ रही है और बात अब झीलों व तालाबों तक का अवैज्ञानिक विकास करने पर भी आ पहुची है क्यूंकि लोग अहमदाबाद के पास कांकरिया झील के विकास के उदाहरण से इसका औचित्य-प्रमाण तर्क सामने रख रहे है. 

भारत में वर्तमान में हम अभी ही सुखाड़ और बाढ़ जैसी विषमताओं को लोग लगभग हर वर्ष झेल रहे हैं. हम इस बात से भी बेखबर है कि आने वाले वर्षों में लोगों के लिए उपयोगप्रयुक्त जल का संकट सबसे बड़ी समस्या होगी. हमें बिजली उत्पादन और आधारभूत संरचना के निर्माण में भी गति देनी है जिसका भी पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है. ऐसे में पेरिस में COP21 में पर्यावरण सम्बन्धी हमारे इकरार और इस प्रकार के विकृत विकास कार्यक्रम में कैसे सामंजस्य बैठ पायेगा. विडम्बना ये है कि ऐसे अहितकारी विकास के मिसालों को राजनैतिक वर्ग अपनी स्वार्थी वोट बैंक राजनीति का मोहरा बनाने में तुले है और देश-समाज के दूरगामी हितों के दायित्व से मूह मोड़ रहे है.     

हमारे देश को इन मुद्दों पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए पर राजनैतिक वर्ग हमें लोकलुभावन और छिछले विषयों पर ही उलझे रहने देते है. अगर हम अभी भी ऐसे मुद्दों पर एकजुट होकर खड़े नहीं होंगे तो हमारी वृहद् आबादी और सीमित प्राकृतिक संसाधनों के परिपेक्ष्य में आने वाली गंभीर चुनौतियों से उबरना अत्यंत मुश्किल होगा.  

आपका

राकेश प्रसाद

coordinator @ ballotboxIndia.com

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