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स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया, डेंगू, गंदे नाले, ड्रेनेज व जलभराव कहां है स्वच्छ भारत – एक विश्लेषण

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स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया, डेंगू, भारत ने कुछ साल पहले तक इन महामारियों के बारे में सुना तक ना था.आज ये बीमारियां तकरीबन हर वर्ष कई शहरों में अपना विकराल रूप दिखलाती रहती है और अक्सर टेलीविज़न पर जनचेतना हेतु इनसे बचाव के उपाय सुने जा सकते है. इन्हीं पहलुओं को लेकर हमारी एक रिसर्च रिपोर्ट.

डराने वाले शोध 

ऐसा नहीं है कि पहले हम बीमार नहीं पड़ते थे पर इस तरह की नई बीमारियां नहीं थी. आज स्वाइन फ्लू (H1N1 और इसके जैसे ही अन्य वायरस), डेंगू और अन्य संबंधी रोगाणु जनित नए रोग और पीलिया, हैजा, टाइफाइड, निमोनिया जैसे अन्य संक्रमणों से भारत के विभिन्न इलाके त्रस्त हैं.
इस विषय पर कुछ शोध रिपोर्ट, विशेष कर पश्चिमी देशों के अनुसंधान यह बताते हैं कि कतिपय जीव रोगाणुओं में समय के साथ आनुवंशिक उत्परिवर्तन हो रहे है जिससे पुरानी दवाइयां असरहीन साबित हो रही है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद जैसी संस्था इस विषय पर अभी भी अपना शोध जारी रखे हुए है और इन नए रोगों के उपचार हेतु एंटीबायोटिक के उचित प्रयोग विधि पर अपना अभिमत देने का प्रयास कर रही है.

भारतीय तथ्य

इस विषय पर कुछ तथ्यों को संज्ञान में रखना आवश्यक है:
१. भारत में जनसँख्या घनत्व बहुत अधिक है.
२. यहाँ पर एंटीबायोटिक दवाओं की उपलब्धता सहज है और किसी भी रोगी द्वारा इसके उपभोग संबंधी कोई उचित लेखा प्रमाण नहीं रहता है. विकसित पश्चिमी देशों में हर रोगी द्वारा समय-समय पर उपयोग की गई एंटीबायोटिक दवाओं का पूरा विवरण उसकी स्वास्थ्य विवरणी में दर्ज रहता है.
३. सर्व सुलभ समुचित उपचार व्यवस्था एवं स्वास्थ्य संबंधी जन चेतना के अभाव में एंटीबायोटिक दवाओं का अनुचित उपयोग भी देखा गया है जैसे किसी एंटीबायोटिक दवा की पूरी खुराक ना लेने के कारण भविष्य में उस दवा की असरकारक क्षमता में ह्रास होना आम है. इस कारण भी स्वाइन फ्लू, डेंगू, जैसी बिमारियों का इलाज दुष्कर हो जाता है.
उक्त कारण भी यह इंगित करते हैं कि भारत में इन संक्रामक बीमारियों का बेतहाशा विस्तार क्यों हो रहा है और जनसाधारण के लिए इनसे निपटना क्यों मुश्किल हो रहा है. 



एंटीबायोटिक का बेहिसाब इस्तेमाल खतरनाक

विगत वर्षों में आम लोगों में इन संक्रामक रोगों के बारे में जनचेतना का प्रसार और इनके इलाज के लिए उपलब्ध साधनों की वृद्धि में प्रगति तो निश्चित देखी जा सकती है परन्तु वस्तुस्थिति की व्यापकता की तुलना में यह अभी भी अपर्याप्त और धीमी ही है. भारत में लोगों द्वारा समय-समय पर विभिन्न संक्रमणों से ग्रसित होना और उसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेने की प्रवृति ही नए उभर रहे संक्रमणों के प्रभावी इलाज़ में मुख्य बाधा बन कर सामने आ रही है.

प्रधानमंत्री का स्वच्छता अभियान हो रहा बेअसर

भारत में व्यापक रूप से फैले अनेक संक्रमणों जैसे डेंगू, टाइफाइड, पीलिया, आदि बीमारियों को हम सीधे तौर पर यहाँ के प्रशासन की स्वच्छता संबंधी कमियों की परिणति मान कर देख सकते है. आज छोटी उम्र के बच्चों में भी मूत्र संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियां आम हो गयी हैं.
चारों ओर फैले गन्दगी के अम्बार में संक्रमण रोगाणु सहज रूप से पनपते-बढ़ते है और आस-पास रहने वालों को पीड़ित कर देते है. बचपन से ही इन संक्रमणों से लड़ने के लिए हम एंटीबायोटिक दवा पर निर्भर होने को मजबूर हो जाते है. कालांतर में हमारे  शरीर की  रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाने से हम डेंगू (H1N1) आदि घातक बीमारी के चपेट में सहज ही आ जाते है. 

आखिर प्रशासन अपनी जवाबदेही कब तय करेगा

किसी भी सभ्य समाज में शहरी नियोजन करने वालों की मुख्य जिम्मेदारी होती है कि नगरवासी सहजता और सुगमता से जीवनचर्या से जुड़े तमाम कार्य  (जैसे कार्य के लिए आवागमन, बाज़ार, आपस में मिलना-जुलना, खेल, इत्यादि) करने में समर्थ हो. साथ ही उस नगर की भौगोलिक संस्थिकी से सामंजस्य बिठाकर सड़कों, मार्गों, जलाशयों,पर्यावरण आदि का सार्थक उपयोग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. अगर यह सामंजस्य यथेष्ठ होता है तो निश्चित रूप से उस स्थान के निवासियों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अनुकूल पाया गया है. समुचित शहरी नियोजन और उसके परिणाम स्वरुप उत्पन्न स्थायी स्वच्छता को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए परम महत्वपूर्ण कारक माना गया है.

आज़ादी के बाद लगभग ४ दशको तक यानी ५० से ९० के दशक तक आर्थिक वृद्धि दर अत्यंत धीमी थी और उसे (व्यंग में) हिन्दू वृद्धि दर अर्थात ५ प्रतिशत के आस पास ही गिना जाता था. इसके परिणाम स्वरुप पड़ोसी एशियाई देशों की तुलना में हमारे गाँवों और शहरों में यथोचित विकास कार्य नहीं हो पाए. इस मूलभूत संरचनाओं के संपूर्ण विकास के अभाव में देश के अधिकतर निवासी, चाहे गाँव में या शहर में, निम्नतर परिवेश में जीने को मजबूर थे. उन्हें मूलभूत सुविधा जैसे घरों में पीने योग्य पानी, पाइप से जल निकास, २४ घंटे के निर्बाध बिजली आदि भी मुहैया नहीं थी. पिछली शताब्दी के सुस्त विकास गति का हमारे देश के नागरीय अंचलों पर दो प्रमुख दुष्प्रभाव हमारे सामने आज भी स्पष्ट है: पहला, अन्यत्र विकसित नगरों की तुलना में हमारे शहरों के आधारभूत संरचना बहुत पिछड गयी. दूसरी बड़ी खामी यह रह गयी की हम अपने शहरी विकास की एक मिसाल भी नहीं बना पाए.

जी हां ये आकड़ें अपने देश के ही हैं (चौंकना माना है)

विशद नगरीय प्रबंधन और नियोजन के अभाव का नतीजा यह हुआ की सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारा ध्यान रोग प्रतिबन्धता को प्रधानता देने की जगह रोग निवारण पर अधिक होता गया. प्रस्तुत तथ्यों और आंक्दन से भी भारत के शहरों के दयनीय स्थिति का हाल स्पष्ट होता है:
सन २०११ के जनगणना के आंकड़े बताते है की अखिल भारत के स्तर पर अभी भी ८२ प्रतिशत आबादी के घरों के मैले पानी के निकास के लिए आवृत (ढकी हुई) जल निकास नालियाँ से संयोजन  नहीं उपलब्ध है. यानी उनके घरों का निष्काषित गन्दा पानी आस-पास खुले नालियों में बहता रहता है.
लगभग ८८ प्रतिशत घरों में पाइप द्वारा मल निकास व्यवस्था नहीं पहुँच पायी है और करीब ५३ प्रतिशत घरों में शौचालय निवास परिसर के बाहर स्थित होता है.
मल निष्कासन और निपटान के सुचारू व्यवस्था तंत्र आज भी देश के चंद महानगरों में ही सीमित है. मात्र देश के दोनों महानगरों दिल्ली और मुंबई में ही देश के वर्तमान मल निष्कासन तंत्र का १७ प्रतिशत उपयोग हो जाता है. 
शोध के अनुसार देश में आज लगभग ८० प्रतिशत मल और जल निकास बिना किसी प्रकार के शोधन के नदियों, नहरों, जलाशयों आदि में सीधे प्रवेश कर जाता है जिससे वहां का जल भी प्रदूषित हो कर अनुपयोगी हो जाता है. इसका एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि पूरे देश में भूगर्भीय जल में नाइट्रेट की मात्रा में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है.   

देश की हकीकत है जनाब

आज के दिन देश भर में मात्र चार नगर ही ऐसे है ( पुणे, सूरत, चेन्नई और गुडगाँव) जो यह दावा करने में समर्थ है कि वे ५० प्रतिशत से अधिक नगरवासियों को ढंके हुए जल, मल निकास जाल तंत्र से जोड़ने की सुविधा देने में सक्षम हुए हैं. अधिकतर शहरों में तो जल, मल निकास व्यवस्था अंततः खुली नालियों और वर्षा के जल प्रवाह हेतु बनी खुली अपवाहिकाओं से जुड़कर जल श्रोतों को प्रदूषित ही करते पाए गए है.
देश में स्थापित कुल शहरी मल प्रवाह नियंत्रण व् निपटान तंत्र का ४० प्रतिशत तो सिर्फ दो महानगरों, दिल्ली और मुंबई, की ज़रूरतों को पूरा करने में ही आवंटित हो कर रह गया है.

ऐसा विकास किस काम का

श्रेणी I और श्रेणी II के शहर, जिनमें अभी विकास हो रहा है और जो निकट भविष्य में गावों और कस्बों से शहर की ओर आने/बसने वालों के नए केंद्र बनेंगे, उनकी स्थिति तो और भी बदतर है. इन शहरों से उत्सर्जित और किसी प्रकार के उपचार रहित मैले प्रवाह को विभिन्न जल स्त्रोतों में मिलने की मात्रा में भी अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है. कुछ वर्ष पहले यह मात्रा लगभग १२ अरब लीटर प्रतिदिन थी जो दुगुनी हो कर वर्तमान में २४ अरब लीटर हो गयी है.     
देश में अभी ३०२ शहर श्रेणी I और ४६७ शहर श्रेणी II के ऐसे है जहाँ आधुनिक तरीके से मल, जल निकास के शोधन की उचित संयंत्र व्यवस्था स्थापित ही नहीं है. जिन शहरों में ये संयत्र कार्य कर रहे हैं (देश का लगभग २१ प्रतिशत जल मल प्रवाह) वहां भी ये करीब ६० प्रतिशत प्रवाह का ही निपटान वांछित मापदंडों के अनुरूप कर पाने में समर्थ है.
कुल मिला कर स्थिति यह बनती है कि श्रेणी I और II शहरों से उत्सर्जित मल प्रवाह का मात्र १२ प्रतिशत ही शोधन अपेक्षित व तय मानकों के अनुसार हो रहा है.

योजना के अभाव में बीमारियों का खतरा

शहरी नियोजन में दूरगामी योजना के अभाव के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य कितनी बुरी तरह प्रभावित होता है डेंगू के बढ़ते कदम इस बात के स्पष्ट सूचक है. हम जानते है कि स्थिर जल (ठहरा हुआ पानी), जो डेंगू मच्छरों का प्रजनन स्थल माना गया है, पूरे जल चक्र का एक बहुत छोटा हिस्सा है और वो भी हमें इतना परेशान कर देता है. इस्तेमाल किये हुए जल का समुचित निपटान हेतु हमें जल निकास का ऐसा समुचित तंत्र स्थापित करना ही होगा जिससे सारे नगरवासी सहज जुड़ सकें.  
अगर नगर की आबादी का एक छोटा हिस्सा भी इस तंत्र से जुड़ने में वंचित रह गया तो सारे किये कराये पर पानी फिर जाने की संभावना बनी रहेगी.
एक समावेशी योजना के समुचित क्रियान्वयन से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे महत्तर उद्देश्यों की प्राप्ति संभव है. शहरी नियोजन के हमारे श्रेष्ठतम उदहारण भी पूर्ण समावेशी योजना उद्देश्यों की कसौटी में असफल ही सिद्ध हुए है. 
शहरों को अपेक्षित बदलाव की जरुरत
दिल्ली - एनसीआर को अगर हम देखे तो पाएंगे कि शहरीकरण से चमचमाते इस महासमुंद्र जैसे वृहद् इलाके के बीच अनेकों छोटे गाँव भी स्थित है जो रेतीले टीलों के मानिंद अड़े हुए है. यहाँ पर शहरों जैसी आधुनिक सफाई व्यवस्था का अभाव है और ये कुछ गाँव-टोले पूरे क्षेत्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य  के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों के लिए बाधक सिद्ध हो सकते है.
शहरों की आधारभूत संरचनाओं में ऐसी तमाम चूकों का खामियाजा हमें भविष्य में पर्यावरण असंतुलन जनित विषमताओं का सामना करने के लिए भारी कीमत देकर चुकानी पड़ती है. इसके परिणाम स्वरुप उपजी सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हमें आर्थिक क्षति ही पहुंचाती है. 
प्रभावी नियोजन के लिए हमें शहरों को एक जीवंत शरीरधारी के रूप में परिकल्पना करनी चाहिए. जिस प्रकार शरीर के अन्दर प्रतिक्षण कचरा बनता रहता है और शरीर उस कचरे के तमाम विषैले तत्वों को अन्य महत्तर अंगों के सुचारू संचालन में बाधक बनने से विलग रखता है, उसी प्रकार शहर में उत्पन्न प्रवाही कचरे के निपटान के लिए भी नियोजकों को एक समग्र समाधान निकालना चाहिए.

क्रियान्वयन  की जरुरत 

सार्वजनिक स्वास्थ के सफल क्रियान्वयन के लिए हमें निम्नलिखित उपायों पर अविलम्ब कार्यवाही सुनिश्चित करनी होगी:
• बिना ढके हुए नालों का निर्माण बारिश के जल के निस्तारण के लिए ही किया जाना चाहिए. यदि हम नागरीय मल, जल निकास के नालों को इन खुले नालों से संयुक्त कर देते है और अंततः ये नाले या तो सतही जल स्त्रोतों (नदी या जलाशय आदि) को प्रदूषित करेंगे अथवा भूगर्भीय जल स्त्रोतों को. आज भी देश की आधी से अधिक आबादी भूगर्भीय स्त्रोतों से प्राप्त जल पर निर्भर है जिसे वो सभी आवश्यक दिनचर्या कार्य (जैसे नहाने, भोजन पकाने, पीने के आदि ) उपयोग में लेते है. भूगर्भीय जल के बढ़ते प्रदुषण से आबादी का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थय संबंधी खतरे की आशंका से सदैव ग्रसित रहने के लिए मजबूर रहेगा.
• बारिश जनित जल निस्तारण के लिए बने खुले नालों की गुणवत्ता भी तय मानकों के अनुरूप हो. उनकी यथोचित ढलान सुनिश्चित की जाये और उन पर जालीदार ढक्कन अनिवार्य रूप से लगाये जाये.
• हमें देश के हर शहर को पाइप द्वारा (ढकी हुई) मैले जल निकास व्यवस्था से उन्नत करने का लक्ष्य बनाना होगा. देश में आम तौर पर ऐसे भारी आर्थिक लागत वाली परियोजनाए विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम्.ऍफ़.) के सहयोग से ही पूरी होती देखी गयी है. सरकार को भी इस कार्य को प्राथमिकता देते हुए और त्वरित आर्थिक साधन जुटाने के लिए संसाधन बांड बाज़ार में जारी करना भी समीचीन होगा. सार्वजनिक स्वास्थ से जुड़े उद्देश्यों की सफलता से उत्पन्न आर्थिक लाभों से इन ऋण पत्रों का भुगतान भी समयबद्ध अवधि में आसानी से किया जाना संभव होगा.
• मल जल निस्तारण की पाइप प्रणाली और वर्षा जल निस्तारण हेतु बने खुले नाले किसी भी स्तर पर एक दूसरे से संयोग ना करे. ऐसा कई स्थानों पर देखा गया है कि मल, जल शोधन संयत्र इसीलिए ख़राब हो जाते है क्योंकि मैला जल और वर्षा जनित जल दोनों सम्मिलित हो जाते है. यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि सेप्टिक टंकी अथवा सुलभ मॉडल सिर्फ ग्रामीण क्षत्रों के उपयोग हेतु ही कारगर है.

दूरगामी सोच के साथ बढ़ने की जरुरत

कचरे के प्रभावी पुनश्चक्रण के लिए ठोस घटकों को पृथक करना नितांत आवश्यक है. नगरपालिका एवं अन्य सम्बंधित निकायों को ठोस कचरा पदार्थों व अवशिष्टों का घरेलु इकाई स्तर पर ही पृथक्करण हो जाये, ऐसा जन जागरण का प्रयास करना होगा. हमारा सुझाव तो यह होगा कि जो भी जानबूझकर ऐसा नहीं करते है, उनके घरों से कचरा उठाना बंद कर देना चाहिए.
शहरों में सडकों पर भी जल जमाव की समस्या आम है. सड़क के किनारे वर्षा जनित जल के निस्तारण के लिए बने नाले भी उचित परिकल्पना और सही अभियांत्रिकी के अभाव के कारण निचले इलाके में जल जमाव कर देते है जो धीरे-धीरे सूरज की गर्मी से सूखता है. यह भी प्रदुषण का एक अहम् कारक होता है. 
यह अनिवार्य है कि हम अपने शहरों का नियोजन सधी हुई गति से करें ना कि मेढ़क दौड़ की तर्ज पर. हमें अपने शहरों का नियोजन समग्रता से और आने वाले समय में इन पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ के लिए तैयार रखते हुए करना होगा. इस कार्य में हमें दूरगामी सोच, सुदृढ़ प्रणालियों और स्थानीय अभिनव विचारों का सामंजस्य करते हुए ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी होगी जिसमें जनसाधारण को डेंगू जैसी मौसमी महामारियों का दंश ना झेलना पड़े.

इस विषय पर भविष्य में भी यहाँ विषयविचार के क्रम को आगे ले जाया जायेगा, अतः देखते रहे.

हमारी अपील

सभी प्रबुद्ध सुधिजनों से, विषय विशषज्ञों से और सामाजिक संगठनों से कि वे इस मुहिम में हमारा साथ दे जिसके अंतर्गत हम स्थानीय स्तर पर ऐसे अनेक कार्य समूहों का गठन करें जो इन समस्याओं के निवारण हेतु सजगता व सक्रियता दिखाए. हमें बल मिलेगा आप सबों के सुझावों से, विचारों से और समर्थन से. हमें भली-भांति पता है कि ये कार्य अकेले हमसे परिणति तक नहीं पहुँच पायेगा. आइये संकल्प ले स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, सुविधाजनक भारत बनाने की 

अगर आप विषय विशषज्ञ हैं या सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं और हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.

अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.

क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय,कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.

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